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चूर्णप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[ २४५]
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___ अथ जकारादिचूर्णप्रकरणम् (१९८६) जठराग्निवर्धन चूर्णम् (यो.स.स.४) एतचूर्ण समं श्लक्ष्णं मधुना सह भक्षितम् । कुटज चविषावासान्यग्रोधत्वग्लवङ्गकाः। रक्तपित्तोद्भवं शीघ्रं हन्त्यतीसारमुल्वणम् ।। समचूर्णीकृतं सर्व जठराग्निविवर्धनम् ॥ जामन और आमके फलोंकी गिरी ( गुठलीके
कुकी छाल, अतीस, बासकी छाल, और भीतरका गूदा ) द्राक्षा ( मुनक्का ), हर्र, पीपल, लौंग समान भाग लेकर महीन चूर्ण करके रख खजूर, सेंभलकी छाल, गूलरके फल और छाल । लीजिए।
समान भाग लेकर चूर्ण बना लीजिए। इसके सेवनसे जठराग्निकी वृद्धि होती है। इसे शहदके साथ मिलाकर चाटनेसे रक्तपित्त - ( मात्रा १॥-२ माशे । अनुपान गर्म जल।) सम्बन्धी अतिसार शीघ्र नष्ट होता है। (१९८७) जम्बूकपुष्पादियोग (वं.से.।बा.रो.) ( मात्रा २-३ माशे ) जम्बू कतिन्दुकानाञ्च पुष्पाणि च फलानि च। (१९९०) जम्ध्वादियोगत्रयः घृतेन मधुना लोवा मुच्यते हिकया शिशुः॥ (वृं. मा.; वं. से. । छर्दि.)
जामने और तिन्दुक ( तेंदु )के फूलों और सजाम्बवं वा बदरस्य चूर्ण फलों के चूर्णको शहद और धृतमें मिलाकर चटानेसे मुस्तायुतां कर्कटकस्य शृङ्गीम् । बालकों की हिचकी नष्ट होती है । | दुरालभाम्बा मधुसम्प्रयुक्ता। (१९८८) जम्बूदलाशुद्वर्तनम् ( यो. र.)
लियात्कफच्छर्दिविनिग्रहार्थम् ।। जम्बूदलार्जुनतरुप्रसवैः सकुष्ठै
__जामनकी गुटलो या बेरकी गुठलीके भीतरके रुद्वर्तनम् प्रकुरुते प्रति वासरं यः।
गूदेका चूर्ण अथवा मोथे और काकडासिंगीका चूर्ण प्रस्वेदबिन्दुकणिकानिकरानुषङ्गाद
या धमासेका चूर्ण शहदके साथ मिलाकर चाटनेसे दुर्गन्धिता वपि तस्य पदं न धत्ते ॥
कफ और वमन ( उल्टी )का नाश होता है । प्रतिदिन जामनके पत्ते, अर्जुन ( काह )के (१९९१) जयाखण्डचूर्णम् (यो.र.।अतिसा.) फूल, और कूठके चूर्णका उबटन करनेसे अधिक जयाखण्डं साखरूडं जीरकं दधिमिश्रितम् । पसीना और दुर्गन्ध नष्ट होती है। आमातिसाररक्तञ्च हन्ति वेगेन कौतुकम् ॥ (१९८९) जम्ध्वादिचूर्णम् (बृ. नि.र. अति.) भांग, खांड, साखरुण्ड ( वृक्ष विशेष, जिससे जन्बूचूतफलस्पास्थिद्राक्षा पथ्या च पिप्पली। कपड़ों के लिए रंग बनाया जाता है ) और जीरा खजां शाल्मलीछल्ली उदुम्बर सबल्कलम् ॥ ! समान भाग लेकर चूर्ण कर लीजिए।
१-जम्बूक शब्द प्रायः जामनके लिए व्यवहृत नहीं होता, जम्बूकका वास्तविक अर्थ तो लोध है परन्तु यहां 'जम्बु' के स्थानमें “ जम्बूक' प्रयुक्त हुवा प्रतीत होता है।
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