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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [२४४] भारत-मैपज्य-रत्नाकरः। [जकारादि - vvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvnemuviwwvvvvvvvvvvvvwwwVAN | नष्ट होता है। पथ्य-गेहूं को रोटो और घी । नमकसे । काय दशक" कहते हैं । यह ओपधियां जीवनी परहेज़ करना चाहिए। शक्तिकी वृद्धि करती हैं। (१९८०) जात्यादिकाथः (वा.भ.। चि.अ.१) (१९८३) जीवनीयक्षीरम् (ग.नि. अरोच.) जात्यामलकमुस्तानि तद्वद्धन्वयवासकम् । जीवनीयोपसिद्धं वा पिवेत् क्षरं सशरिम् । वद्धविट् कटुकादाक्षात्रायन्तीत्रिफलागुडान् ॥ शीतं माक्षिकसंयुक्तं पैत्ति ..स्वरवं धनम् ॥ ___ यदि ज्वरमें कब्ज ( मलावरोध ) हो तो जीनीय' ग- की ओषधियां समान भाग चमेली के पत्ते, आमला, नागरमोथा, धमासा, कुटकी, मिली हुई ५ तोले, दूध ४० तोले और पानी । १६० तोले । एकत्र मिलाकर पकाएं । सब पानी द्राक्षा (मुनक्का), त्रायमाणा और त्रिफलाके काथमें गुड़ मिलाकर पीना चाहिए। जल जाने पर छानलें । इस ठण्डा करके मिश्री और शहद मिलाकर पीनेस पित्तज स्वरभंग रोग नोट-यही प्रयोग चरकमें भी लिखा है परन्तु उसमें कुटकी, द्राक्षा, त्रायमाणा और त्रिफला (१९८४) ज्योतिष्मतीपत्रयोगः । नहीं है। (यो. र. । स्त्री.; भा. प्र. । म. खं. स्त्री.) (१९८१) जीवकपुत्रकबीजप्रयोगः ( वं. से. । स्त्री.) पोतं ज्योतिप्मतीपत्रं राजिक बसनं यहम् । जीवकपुत्रकबीजं क्षीरेण पिबेत्सपत्रमूलञ्च । शीतेन पसा पि कुसुम जनयेद्धवम् । ज्योतिष्मती ( मालकानी )के पत्र, र ई. बच दारकनष्टा वनिता जनयति दीर्घायुषं पुत्रम् ।। और असनावृक्षाकी छ.लको ठण्डे पानी में पीसकर जिस स्त्रीके बच्चे जोषित न रहते हों उस | तीन दिन तक पिलानेसे स्त्रियों को रजो..ाव जीवक पुत्र ( जिया पोता )के बीज, पत्र और (मासिक धर्म ) अवश्य होने लगता है । मूलको दूधमें पीसकर पिलानेसे वह दीर्घायु पुत्र (१९८५) ज्वरहरो कषायदशक उत्पन्न करती है। (१९८२) जीवनीयकषायदशकः (च. सं. । सू. अ. ४) सारिवाशरापाठामञ्जिष्ठाद्राक्षापीलुपरू(च. सं. । सू. अ. ४) पाभयामल कविभीतहानीति दशेमानि जीवकर्षभको मेदा महामेदा काकोली क्षीर ज्वरहराणि भवन्ति । काकोली मुद्गमाषपर्यो जीवन्ती मधुकमिति । सारिवा, मिश्री, पाठा, मजीठ, मुनक्का, पीलु, दशेमानि जीवनीयानि भवन्ति । ___ जीवक, ऋषभक, मेदा, महामेदा, काकोली, फालसा, हर्र, आमला और बहेड़ा । यह दश चीजें वरनाशक हैं। क्षीरकाकोली, मुद्गपर्णी, माषपर्णी, जीवन्ती और मुलै । इन दश ओषधियों के गणको “जीवनीय ॥ इति जकारादिरूपायप्रकरणम् ।। १-'जीवनीय गण' प्रयोग सं. १९८२ देखिए। २-स्वाजकोनासन मिते पाठान्तर। किसी किसी चन्थमें राईकी जगह सजी भी लिखी है। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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