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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir कषायप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [२४३] WVVANINN/AlAt' (१९७३) जलधरादिकाथः (वृ. नि.र.सन्नि.) चूर्ण तथा खांडको एकत्र करके शहदमें मिलाकर जलधरदशमूलं वारिशुण्ठीसमेतम् चाटनेसे पुरानी छर्दि नष्ट होती है । मलयजकृतमालं वासकं पर्पटश्च । (१९७७) जातीपत्रादिकाथः समधरणघृतांशःकाथ एष प्रभाते (वं. से.; यो. र.; वृ. नि. र.; . मा.; भा. प्र.। शमयति समुदीर्ण पीतमात्र प्रलापम् ॥ मुख.; वै. जी. । वि. ४.; यो. त. । त. ६९) नागरमोथा, दशमूल, सुगन्धबाला, सोंठ, सफेद | जातीपत्रामृताद्राक्षायासदावर्वीफलत्रिकैः । चन्दन, अमलतास, बासा और पित्तपापड़ा समान काथाक्षौद्रयुतःशीतो गण्डूषो मुखपाकनुत् ॥ भाग मिलाकर दो तोले लेकर आधासेर पानीमें चमेली के पत्ते, गिलोय, मुनका, धमाला, दारुहल्दी और त्रिफलाके काथको ठण्डा करके पकाकर छानकर उसमें ७॥ माशे घी मिलाकर शहद मिलाकर उसके कुल्ले ( गरारे ) करनेसे प्रातःकाल पिलाने से प्रबल प्रलाप भी तुरन्त शान्त मुखपाक ( मुंहके छाले और घाव ) नष्ट होता है। हो जाता है। (१९७८) जातीपत्रादिकाथ: (१९७४) जलवेतसादियोगः ( वं. से.।विष.) (वं. से.; र. र. । मसू.) जलवेतसवृक्षस्य मूलं कुष्ठं पचेजले । जातीपत्रसमञ्जिष्ठा दाव:पूगफलं शमी। स काथःशीतल पेयः परञ्च विषनाशनः ॥ धात्रीफलं समधुकं कथितं मधुसंयुतम् ॥ - जलवेतस वृक्षकी जड़ और कूठको पानीमें मुखवणे कण्ठरोगे गण्डूषार्थ प्रशस्यते ॥ पकाकर छानकर ठण्डा करके पीनेसे विषका नाश चमेलीके पत्ते, मजीठ, दारुहल्दी, सुपारी, होता है। शमी ( छोकरा )की छाल, आमला और मुलैठीके (१९७५) जलशैवालयोगः (वै.म.प.११) काथमें शहद डालकर कुल्ले करानेसे मुखत्रण ( मुंहके जलशैवालमादाय कण्डूक्लेदान्विते तनौ।। घाव ) और कण्ठरोगोंमें अत्यन्त लाभ पहुंचता है। परिपेष्य जलं सिञ्चेत्तत्तस्य परमौषधम् ॥ (१९७९) जातीप्रवालरसादियोगः पानीमें उत्पन्न होनेवाली शैवाल (सिरवाल) (यो. र. । उप.) को पीसकर पानीमें मिलाकर उस पानीसे खुजली जातीप्रवालस्वरसं पलार्ध वाले अङ्गको धोना चाहिए। खुजली और क्लेद धेनोघृतं सर्जरसेन युक्तम् । (चिपचिपाहट)के लिए यह अत्युत्तम औषध है। पिबेत्पगे पञ्चविधोपदंशे क्षाराहते गोधूमसर्पिपथ्यम् ॥ (१९७६) जातीपत्ररसादियोगः चमेली के पत्तोंका स्वरस आधा पल (२॥. (ग. नि.; वृ. नि. र. । छदि.) तोले ) निकाल कर उसमें गायका घी और राल जातीपत्ररसं कृष्णा मरिच शर्करान्वितम् । । मिलाकर प्रातःकाल पीनेसे पांच प्रकारका उपदंश एतानि मधुयुक्तानि हन्युश्छदि चिरोद्भवाम् ॥ (आतशक ) नष्ट हो जाता है। चमेलीके पत्तोंका रस, पीपल और मिर्चका ( राल ३ माशे, धी १ तो.।) For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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