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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः ।
जकारादि
(१९६७) जम्ध्वादिशीतकषायः
- जामन, आम और आमले के नए पत्तों (च. द.; वृ. मा. । छर्दि.) (कोपलों) को कूटकर रस निकालकर उसे बकरीके जम्बाम्रपल्लवगवेधुकधान्यसेव्य- दूधमें मिलाकर और शहदसे मीठा करके पीनेसे हीवेरवारिमधुना पिवतोऽल्पमल्पम् । रक्तातिसारका नाश होता है। (मात्रा-स्वरस ५ छर्दिःप्रयाति शमनं त्रिसुगन्धियुक्ता तोले, दूध ५ तो०) लीढा निहन्ति मधुना च दुरालभा वा ॥
(१९७०) जयादिकाथः (यो. र. । उपदं.) जामन और आमके पत्ते, गुलसकरी, धनिया,
जयाजात्यश्वमारार्कशम्पाकानां दलैः पृथक् । खस, और नेत्रबाला समान भाग मिलाकर २ तोले
कृतं प्रक्षालने काथं मेढ़पाके प्रयोजयेत् ।। लेकर कूटकर रातको ३२ तोले पानीमें मिट्टीके बरतनमें भिगो दीजिए । प्रातःकाल छानकर उसमें
जया, चमेली, कनेर, आक और अमलतास शहद मिलाकर थोड़ा थोड़ा पीनेसे; अथवा दाल
में से किसी एकके पत्तोंके काथसे धोनेसे लिंगचीनी, इलायची तेजपात और धमासेके चूर्णको
व्रण (आतशकके धात्र) नष्ट होते हैं । शहदमें मिलाकर चाटनेसे छर्दि (वमन) का नाश
(१९७१) जलकुम्भीक्षारयोगः होता है।
(ग. नि. । ग्रन्थ्य.; . मा.; यो. र. । गल.) (१९६८) जम्वादिस्वरसः (वै. म. । प. ६) जलकुम्भीक भस्म पकं गोमूत्रगालितम् । जम्बूक्षीरीवृक्षारलुककुभकरञ्जपल्लवस्वरसम् । पिबेत्कोद्रवतक्राशी गलगण्डोपशान्तये ।। लकुचफलस्वरसं पलं छागं पयःपलमपि । ___ जल कुम्भीकी राखको गोमूत्र में पकाकर छान
प्रगे पीत्वा ॥ कर पीने और कोदों तथा तक्रका आहार करने से जयति सरक्तश्लेष्मं प्रवाहणं गुदेषु जातश्च ॥
गलगण्ड रोग नष्ट होता है । ... जामन, क्षीरी वृक्ष (बड़, पीपल, गूलर आदि)
(१९७२) जलत्रिकयोगः (यो. समु.। ४) अरलु, अर्जुन और करञ्ज के पत्तों तथा बढहलके
जलं सरोधं सहशृङ्गवेरफलोंका स्वरस १ पल (५ तोले) और बकरीका
मजापयोभिः सहितं कथित्वा। दूध ५ त्तोले मिलाकर प्रातःकाल पीनेसे रक्त और कफयुक्त अतिसार का नाश होता है।
पिवेदतीसारगदे सशुले (१९६९) जम्वादिस्वरस
पित्तोद्भवे दाहसमन्विते च ॥ . (भा. प्र. । म. खं. अति.; ग. नि. । अति.;
नेत्रबाला, लोध और अदरखको बकरीके दूध - शा. सं. खं, २ । अ. १)
...! में पकाकर पीनेसे दाह और शूलयुक्त पित्तज जम्ब्बाम्रामलकीनान्तु कुट्ट येत्पल्लवानवान् । अतिसारका नाश होता है। (प्रत्येक औषध १ संर ह्य स्वरस तेषामजाझीरेण योजयेत् ॥ .. तोला, दूध २४ तो. पानी ९६ तो. एकत्र मिलातत्पीतं मधुना युक्तं रक्तातिसारनाशनम् ॥ कर पानी जल जाने तक पकाएं।)
१ शाधर और योगरत्नाकरमें इस प्रयोगके अनुपानमें घी भी लिखा हैं।
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