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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir जमारादिकपातप्रकरण ) द्वितोयो भाग : । [ २४१ ] अथ जकारादिकषायप्रकरणम् (१९६२) जपाकुसुमप्रयोगः (यो. र. । स्त्री.) छर्दि (मन) और अतिसार (दरता) के आरनालपरिपेषितं व्यह लिए जामन और आमके पत्तोंके काथको ठण्डा या जपाकुसुममति पुप्पिगी। | करके उसमें शहद और धानकी खीलोंका चूर्ण सत्पुराणगुइमुष्टिसे वेती मिलाकर पीना अत्यन्त गुणकारी है। सा दधाति न हि गर्भमङ्गना ।।। । (१९६५) जम्बूपल्लवादिकाथः (ग.नि.।छर्य.) जो स्त्री ऋतुकालमें ३ दिन तक जपा (जपा) जयाम्रपल्लवोशीरवटाश्वत्थावरोहजः । के पूलों को कजीमें पीसकर ५ तोळे गुड़में मिला- काथ.शीतो मधयुत पीतच्छदिनिवारणः॥६०॥ कर खाती है उसको गर्भ नहीं रहता। ___ जामन और आमके पत्ते, खस, बड़ और (१९६३) जपादियोगः (यो. स. । स. ५) । पीपलवृक्षके अङ्कुरों के क्वाथको ठण्डा करके शहद मूलं जपायाः कुसुन युक्तं । मिलाकर पीनेसे छर्दि ( वमन ) नष्ट होती है । संकाय यत्नास्पिवति प्रभाते। यसमा अपत्यं न दधाति पूर्टि (१९६६) जम्वादिकाथः ( वं. से. । ग्रह.) गर्नस्त्रिी वातादेदोषैः ॥ जन्बूदाडिमशृङ्गाटपाठाकञ्चटपल्लवैः । यदि वात ककादि दोनों के कारण गर्भत्थित पकं पर्युषितं बाल वेल्वं सगुइनागरम् ॥ . वालककी पुष्टि न होती हो तो जपा (जगा) को हन्ति सर्वानतीसारान्ग्रहणीमतिदुस्तराम् । जड़ और पूलों को पफाफर प्रातःकाल पीना जामन के पत्ते, अनारके पत्ते, सिंपा के पत्ते, चाहिए। । पाा और चौल.ई के पत्ते समान भाग लेकर कूट(१९६४) जम्पल्वादिकायः कर रात को पानीमें पकाकर छानकर उसमें बेल(वृ. यो. त. । त. ८४; वं. से.; वृ.नि. र.; . मा.। गिरी भिगोकर ढककर रख दीजिए । प्रातःकाल छर्दि; भा. प्र. खं. २ । छर्दि.) उसमें गुड़ और सों का चूर्ण मिलाकर पीनेसे जब्बाम्रपल्लवश्रृतं क्षे.द्रं दत्त्वा सुर्शतलं तोयम्। समस्त प्रकारके अतिसारों और भयङ्कर संग्रहणी लाजैरव पिच्छ यतिसारे परं सिद्धम् ।। । का नाश होता है। भा० ३१ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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