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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra [ २४० 1 www.kobatirth.org भारत - भैषज्य रत्नाकरः । अथ छकारादिरसप्रकरणम् (१९६१) छन्तकरस: ( यो. र. 1 ) रसभस्म पलांशं स्यात्तत्पादः स्वर्णभस्म च । ताम्रं भुजङ्गवङ्गे च मौक्तिकं तत्समांशकम् ॥ तेषां सममयचूर्णमकं तत्समं भवेत् । तत्समं गन्धकं दत्वा वीजपूराईकाम्बुना ॥ सबै खल्वे विनिक्षिप्य मर्दयेत्त्रिदिनावधिः । तत्कल्कं भावयेत्ससदिनान्यामलकद्रवैः ॥ पश्चान्मूषायां रुङ्गा भाण्डे विनिक्षेपेत् । बालुभिः परिपूर्याथ क्रमवृद्धेन वहिना || पचेद्यामत्रयं चुल्यां स्वाङ्गशीतलमुद्धरेत् । ततः सर्व समाकृष्य चूर्णयेत्पगालितम् ॥ अजाजी दीप्यकं व्योषं त्रिफला कृष्णजीरकम् । कृमिशत्रुवराङ्गं च प्रत्येकं निष्कमानकम् ॥ ततः सर्व चूर्णयित्वा योजयेत्पूर्वभस्मना । इत्थं पञ्चरसैरेष मोक्तश्छर्धन्तको रसः ॥ तद्रोगहरैद्रव्यैर्दद्याद्वल्लुप्रमाणतः अम्लपित्तमसृक्तिं छर्दि गुल्ममरोचकम् ॥ आमवातञ्च दुःसाध्यं मसेकच्छर्दिहृद्रुजम् । सर्वलक्षणसम्पूर्ण विनिहन्ति क्षयामयम् । स्वस्थोचितो हितकरः सर्वेषाममृतोपमः ।। [ छकारादि रसमकरणम् पारद भस्म ( रस सिन्दूर) १ पल (५ तोले), स्वर्ण भस्म, ताम्र भस्म, शीशा भस्म, वङ्ग भस्म, मोती भस्म १। - १। तोले और लोहभस्म ११ | तोले तथा अभ्रक भस्म २२|| तोले और शुद्ध गन्धक ४५ तोले लेकर सबको ३-३ दिन तक अद्रक और जम्बीरी नीबू के रस में घोटिए । फिर सात दिन तक आमलेके रसमें घोट कर उसे अन्ध मूषामें बन्द करके ३ पहर तक बालुका यन्त्रमें मृदु, मध्यम, तित्राभि पर पकाइये। जब यन्त्र स्वांग शीतल हो जाय तो उसमेंसे औषध निकाल कर पीसकर कपड़े से छान लीजिए। अब इसमें ५- ५ माशे जीरा, अजवायन, सोंठ, मिर्च, पीपल, हरे, बहेड़ा, आमला, कालाजीरा, बायबिडङ्ग, और दारचीनीका चूर्ण मिलाइये । - Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir इसका नाम “छन्तक" रस है । इसे १ वल्ल (३-३ रत्ती) की मात्रानुसार रोगोचित अनुपानके साथ सेवन करानेसे अम्लपित्त, रक्तपित्त, छर्दि (वमन) गुल्म, अरुचि, दुःसाध्य आमवात, जी मचलाना, हृदयकी पीड़ा और सम्पूर्ण लक्षणयुक्तः राजयक्ष्मा रोग नष्ट होता है । यह सबके लिए अमृतोपम स्वास्थ्य-रक्षक है । ॥ इति छकारादिरसमकरणम् ॥ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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