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चूर्णप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[ २३९ ]
अथ छकारादिचूर्णप्रकरणम् अथ छकारादिपाकप्रकरणम् (१९५८) छत्रादिचूर्णम् (बृ.नि.र. ।अरु.) (१९६०) छुहारापाकः (मपुं. अ. । त. ४ )
ग्वजूरपस्थं मगधा पलैकम् । छत्रा बीजं तिन्तडीकं द्राक्षा दाडिमजीरकम् ।।
दुग्धेन संपाच्यं चतुर्गुणेन ।। सौवर्चलं गुडं क्षौद्रं सर्वारोचकनाशनम् ।।
घृतेन संभw पलाष्टकेन । सौंफ, तिन्तडीक, मुनक्का, अनार दाना, द्राक्षाश्वगन्धामुसलीद्वयेन ।। जीरा, सौवर्चल ( काला नमक ) और गुड़ समान लवङ्गनातीफलजातिपत्री। भाग लेकर चूर्ण करके शहदमें मिलाकर चाटनेसे .. पत्रावलाकेशरकैः समांशैः ।। सर्व प्रकारकी अरुचिका नाश होता है । ( जीरा मर्वद्विभागा सुसिता समेतम् ।। भूनकर डालना चाहिए । मात्रा ३ माशे ) - वङ्गाभ्रलोहैस्तु पलार्द्धमानः ।। (१९५९) छोहारायं चूर्णम् (ग.नि.कृमि.)
मज्जा त्रया क्षोटककाश्मरीभिः ।।
साकं विधायास्य च मोदकान्यः ।। छोहारचित्रकविडङ्गपलाशबीजैः
पुष्टस्तु हृष्टः प्रमदामदनो। सव्योपवारिदगदाभयमद्यगन्धैः ।
भुञ्जीत वै रोगगणप्रमुक्तः ।। वाहीकमागधिजटाजरणाजगन्धै
गुठली रहित छुहारे १ सेर और पीपल .१ इचूर्ण त्रिदद्विगुणितं कृमिजिनराणाम् ॥ छटांक ( ५ तो०) लेकर पीसकर चार गुने दूधमें छोहारा (गुटली रहित), चीता, बायबिडंग,
पकाइये. जब मावा तैयार हो जाय तो उसे आधा ढाफके बीज ( पलाश पापड़ा ), त्रिकुटा. ( सोंठ,
सेर धीमें भूनिए और फिर सब औषधोंसे २ गुनी मिर्च, पीपल), नागरमोथा, कूठ, खस, मौलसिरीकी
खांडकी चाशनी बनाकर उसमें यह मावा तथा छाल, केसर, पीपलामूल, जीरा और अजमोद समान
- आधा आधा पल . ( २।।-२॥ तोले.) द्राक्षा भाग तथा निसोत सबसे दो गुना लेकर चूर्ण कर ,
(मुनक्का ) असगन्ध, दोनों मूसली, लौंग, जायफल, लीजिए । इसके सेवनसे कृमिरोग नष्ट होता है।
जावित्री, पत्रज ( तेजपान ), बला (बीजबन्द )
और केशरका महीन चूर्ण तथा बंग, लोह और ( भात्रा २-३ माशं । अनुपान पानी ) अभक भस्म एवं पिस्ता बदाम. चिरौंजी. अखरोटकी
नोट--....-६ दिन औषध खिलानेके पश्चात गिरी और खम्भारीके फल पीसकर मिलाकर रखिए । रोगीको एक विरेचन दे देना चाहिए।
इसके सेवनसे मनुष्य हृष्टपुष्ट, कामनियोंक।
मदभञ्जक और रोगमुक्त होता है । ॥ इति छकारादिचूर्णपकरणम् ॥
॥ इति छकारादिपाकप्रकरणम् ।।
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