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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २३८] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [छकारादि गिलोय, चिरायता, हर्र, बहेड़ा, आमला,... और धमासेका काथ, तथा कफचरमें सोंठ, बांसा, हल्दी, और कुटकीके काथमें गुड़ मिलाकर पीनेसे मोथा और धमासेका काथ पीना चाहिए । शिरशूल, आधाशीशी, कर्णशूल, नेत्रोंकी पीड़ा, (१९५५) छिन्नोद्भवादिकषायः(यो.स.।समु.४) दांतका दर्द, भौं और कनपटीका दर्द शीघ्र ही मिनोडवावधाभेषजभराभिः नष्ट हो जाता है। ___ काथीकृतञ्च सलिलं ग्रहणीगदनम् । (१९५२) छिन्नादि काथः (बृ. नि. र. । ज्वर.) गिलोय, मोथा, सोंठ और अतीसका काथ पिप्पलीचूर्णसंयुक्ताकाथश्छिन्नोद्भवोद्भवः। पीनेसे ग्रहणी रोग नष्ट होता है। जीर्णज्वरकफवंसी पञ्चमूलकृतोऽथवा ॥ (१९५६)छिन्नोद्भवादिक्वाथ (वं.से.|अम्ल.पि.) गिलोय अथवा पंचमूलके क्वाथमें पीपलका छिन्नोद्भवा निम्बपटोलपत्रं चूर्ण डालकर पीनेसे जीर्ण वर और कफका नाश फलत्रिकं सुकथितं सुशीतम् । होता है। क्षौद्रान्वितं पित्तमनेकरूपम् (१९५३) छिन्नादिपाचनम् (वृ.नि.र.ज्व.) सुदारुणं हन्ति तदम्लपित्तम् ॥ छिन्नरुहापिचुमन्दकधान्धं गिलोय, नीमकी छाल, पटोलपत्र, हर्र, बहेड़ा विश्वनिशाजनितश्च कषायः। और आमला । इनके क्वाथको ठण्डा करके उसमें शहद मिलाकर पीनेसे अनेक प्रकारके पित्तरोग पाचनकं गुडमिश्रितमेव... । और दारुण अम्लपित्तका नाश होता है । पित्तभवे ज्वर एव हि पेयम् ॥ गिलोय, नीमकी छाल, धनिया, सोंठ, · और । (१९१७) छिन्नाद्भवादिकाथा (या.स.।समु.३) हल्दी के काथमें गुड मिलाकर पित्तवरमें पीनेसे । छिन्नोद्भवाम्बुधरकण्टकिनीकलिङ्ग . दोषोंका परिपाक हो जाता है। पाठाम्बुवैद्यजननीविहितकषायः। . (१९५४) छिन्नोद्भवादिकषायः (वै.जी।वि.१), पीत प्रभातसमये हरति त्रिदोषं __सञ्जातकर्णकरुजं ज्वरमग्निसादम् ॥ छिन्नोद्भवाम्भोधरधन्वयासैः मनिकापरणया। गिलोय, मोथा, कटेली, इन्द्रजौ, पाठा, सुगन्ध विश्वाषाम्भोधरधन्वयासैः बाला और बासेका काथ प्रातःकाल पीनेसे कर्णक सन्निपातज्वर और अग्निमांद्यका नाश होता है। काथो मरुत्पित्तकफज्वरेषु ॥ ..वातज ज्वरमें गिलोग, नागरमोथा और । ॥ इति छकारादिकषायपकरणम् ।। धमासेका काथ; पित्तवरमें चिरायता, मोथा, रणुका, । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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