SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra छकारादिकषायप्रकरणम् ] www.kobatirth.org द्वितीयो भागः । छ अथ छकारादिकषायप्रकरणम् । (वं. से.; वृं. मा.; ग. नि. च. द. । प्रमे.) छिन्नावह्निकषायं वा पाठाकुटजरामठम् । तिक्ता कुष्ठश्च सञ्चूर्ण्य सर्पिमेही पिवेन्नरः ॥ छिनाशिवापर्पटतोयदानात् अहो ! पाराशरादि मुनिकथित अन्य कषायों की क्या आवश्यकता है? केवल गिलोय, सोंठ (१९४६) छर्दिनिग्रहणो कषायदशकः (च. सं. । सू. स्था. अ. ४) जम्ब्वाम्रपल्लवमातुलुङ्गाम्लबदरदाडिम- और पित्तपापड़ाका काथ ही क्या पित्तज्वरको शान्त reeष्टिकोशीरमृल्लाजा इति दशेमानि छर्दि करनेके लिए पर्याप्त नहीं है ? निग्रहणानि भवन्ति ॥ २८ ॥ (१९४९) छिन्नादिकषायः (वृं. मा. । अम्ल.) छिन्नाखदिरयष्टयाहृदार्व्यम्भो वा मधुद्रवम् ।। जामनके पत्ते, आमके पत्ते, विजौरा नीबू, बेर, दाडिम, जौ, मुलैठी, खस, मिट्टी (पीली मिट्टी) और धानकी खील। यह दश ओषधियां वमन (उल्टी - कै.) को रोकने वाली हैं । (१९४७) छिन्नादिकषायः (अम्लपित्त की शान्तिके लिए) गिलोय, खैर, - मुलेठी, और दारूहल्दोका काथ शहद डालकर पिलाना चाहिए । (१९५०) छिन्नादिकाथः गिलोय और चीतेका काथ अथवा पाठा, इन्द्रजौ, हींग, कुटकी और कूठके समान भाग मिश्रित चूर्णको पीने से सर्पिमेहको आराम होता है। (१९४८) छिन्नादिकषायः (वै. जी. | वि. १; वृ. नि. र. । ज्वर. ) अहो किमर्थ बहुभिर्कषायैः पराशराद्यैर्मुनिभिःप्रदिष्टैः । पित्तज्वरः किं न सरीसरीति ॥ Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [३७] ( भा. प्र. म. खं । विस्को. ) छिन्नापटोल भूनिम्बवासकारिष्टपर्पटैः । खदिराब्दयुतैः काथो हन्ति विस्फोटकज्वरम् ।। गिलोय, पटोलपत्र, चिरायता, बासा, नीमकी छाल, पित्तपापड़ा, खैर और मोथेका काथ विस्फोक ज्वरका नाश करता है । (१९५१) छिन्नादिकाथः (वैधामृत | अलं. ३ ) छिन्नाकिरातत्रिफलात्रियामा तिक्तकषायो गुडसम्प्रयुक्तः । शिरः शिरोर्द्धश्रवणाक्षिदन्त For Private And Personal लानि निहन्ति सद्यः ॥ ५१ ॥
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy