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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [२३२] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [चकारादि Muvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvraniwww जलोदरं कामलाच शोफशुलविनाशनम् । अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर द्रोणपुष्पी (गूमा) रसश्चिन्तामणि ख्यातःशूलपाण्डूदरं हरेत् ॥ के रसमें घोटकर सुखाकर कपड़े में छान लीजिए। शुद्ध पारा १ भाग, शुद्ध गन्धक २ भाग, | इसे १ या २ रत्तीकी मात्रानुसार अद्रकके सुहागेकी खील ३ भाग, सोंठका चूर्ण ४ भाग, रसके साथ सेवन करनेसे अजीर्ण, आठ प्रकारके मिर्चका चूर्ण ५ भाग, हर्रका चूर्ण ६ भाग और । ज्वर, समस्त प्रकारके शूल और आम रोग नष्ट शुद्ध जमालगोटा ७ भाग लेकर महीन चूर्ण करके होते हैं। भांगरे के रसमें घोटकर चनेके बराबर गोलियां (१७३६) चिन्तामणिवटिका (र.का.धे.वर.) बना लीजिए। लवङ्गं चित्रकं शुण्ठी जैपालं च चतु:समम् । (प्रातःकाल ) एक गोली मुड़के साथ खाकर टङ्कणं च प्रदातव्यं वृद्धदारु च कार्षिकम् ।। ऊपरसे बारबार उष्ण पानी पीना और पेट पर | मूतञ्च गन्धगरलमरिचं मेलयेत्समम् । सेक करनी चाहिए। इससे विरेचन होकर आम दन्तीद्रवैः प्रकर्तव्य भावना त्रितयं तथा ॥ निकल जाती हैं और अजीर्ण, ज्वर, जलोदर, माषमात्रा प्रकर्त्तव्या वटिका ज्वरनाशिनी। कामला, सूजन, शूल, पाण्डु और उदर रोगोंका | वटी त्रयश्च पूर्वाह्न शीतं तोयं पिबेदनु । नाश होता है। जीर्णज्वरप्रशमनी पथ्यादेव नियच्छति ।। (१९३५) चिन्तामणिरसः (१२) लौंग, चीता, सोंठ, शुद्ध जमालगोटा, सुहागेकी ( र. का. धे.; भै. र.; वै. र. र.; चं.; र.सा. सं.; खील, बिधारा, शुद्र पारा, शुद्र गन्धक, शुद्ध र. रा. सुं. । ज्वर.; र. मं. । अ. ६; रसे. चि. मीठा तेलिया और स्याहमिर्चका चूर्ण बराबर म. । अ. ९) बराबर लेकर प्रथम पारे गन्धककी कजली बना रसं गन्धं मृतं शुल्वं मृतमभ्रं फलत्रिकम् । लीजिए, तत्पश्चात् अन्य ओषधियों का चूर्ण मिला ध्युषणं बीजजैपालं खल्वे विमर्दयेत् ॥ कर दन्तीके काथकी तीन भावना देकर १-१ द्रोणपुष्पीरसैर्भाव्यं शुष्कं तद्वस्त्रगालितम । माशेकी गोलियां बना लीजिए । चिन्तामणिरसो ह्येष त्वजीर्ण शस्यते सदा ॥ प्रातःकाल शीतल जल के साथ ३ गोली खाने ज्वरमष्टविधं हन्ति सर्वशूलेषु शस्यते। और पथ्य पालन करनेसे जीर्णज्वर नष्ट होता है। गुज्जैकं वा द्विगुजं वा देयमाद्रकवारिणा॥ (व्यवहारिक मात्रा-४-६ रत्ती) शुद्ध पारा,शुद्ध गन्धक,ताम्र भस्म,अभ्रक भस्म (१९३७) चुम्बकः ( आ. वे. प्र. । अ. ८.) हर्र, बहेड़ा, आमला,त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल) स तु पाषाणजातिः उक्तश्च-. और शुद्ध जमालगोटा समान भाग लेकर प्रथम कान्तलोहाश्मभेदाः स्युश्चुम्बकभ्रामकादयः। पारे और गन्धककी कजली बना लीजिए फिर चुम्बकाकान्तपाषाणोऽयस्कान्तो लोहकर्षकः।। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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