________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
रसपकरणम्
द्वितीयो भागः।
[ २२५]
aronrrrrrrr.nn
AMRATAKAAAAAAAAAmov
कृष्णधुस्सूरपयसा मुनिपुष्परसेन च। लेकर दोनोंकी कज्जली बनाइये और उसे ३ दिन भावयित्वा वटी कार्या द्विगुञ्जाफलमानतः॥ तक धी कुमारके रस में घोटकर ३ भाग शुद्ध चम्पकद्रवयोगेन सेवितोऽयं रसेश्वरः। ताम्रके पत्र पर लेप कर दीजिए फिर उस पत्रको चातुर्थिकादीन् निखिलान् निहन्धाद्विषमज्वरान् राखसे भरी हुई हाण्डीके बीचमें दबाकर २ पहर (व्याहिकारिश्चातुर्थिकारिश्च रसो ज्वरविरतौ तक पकाइये, तत्पश्चात् स्वांग शीतल होने पर
प्रयोज्य इति वृद्धवैद्याः।) निकालकर नीबूके रसमें धोटकर टिकिया बनाकर शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, लोह भस्म, अभ्रक सम्पुटमें बन्द करके गज पुट दीजिए। इसी प्रकार भस्म और हरिताल १-१ भाग, और ३ भाग नीबूके रसमें सात पुट देकर पीसकर सुरक्षित रखिए। स्वर्ण भस्म लेकर कजली बना लीजिए फिर उसे इसमेंसे प्रतिदिन १ रत्ती दवा शहद और काले धतूरेके रस और अगस्तिके फूलों के रसमें घीमें मिलाकर खानेके बाद ऊपरसे काञ्जीके साथ धोटकर २-२ रत्तीकी गोलियां बना लीजिए। मूसली और ल्हन पीस कर पीना चाहिए।
___ इन्हें चम्पकके रसके साथ देनेसे चातुर्थिक इसके सेवनसे भगन्दर रोग नष्ट होता है । (चौथिया) आदि समस्त विषमज्वर नष्ट होते हैं। इसके सेवन कालमें मधुराहार करना चाहिए
वृद्ध वैद्यों का मत है कि चातुर्थिकारि और और दिनमें सोना, मैथुन करना तथा शीतल खान त्र्याहिकारिरस उस समय देने चाहिएं जब ज्वर पानसे परहेज़ करना चाहिए। चढ़ा हुवा न हो।
(१९२१) चित्राम्बररस: (१९२०) चित्रविभाण्डको रसः
(र. मं. । अ. ६; र. रा. सुं.; र. का. धे. । संत्र) ( मै. र.; धन्वं. । भगन्द.)
शुद्धमूतं मृतं चादं गन्धकं मर्दयेत्समम् ।
लोहपात्रे घृताभ्यक्ते यामं मृद्धमिना पचेत् ।। शुद्ध सूतं द्विधा गन्धं कुमारीरसमर्दितम् ।
चालयेल्लोहदण्डेन ह्यवतार्य विभावयेत् । . यहान्ते गोलकं कृत्वा तानं तेन प्रलेपयेत् ॥
त्रिदिनं जोरकैःकाथैर्मापैकं भक्षयेन्नरः ॥ द्वयोः समं भस्नपूर्णपात्रे रुद्धा विपाचयेत् । रसश्चित्राम्बरो नाम ग्रहणीं रक्तसंयुताम् । द्वियामान्ते समुद्धत्य स्वाङ्गशीतं विचूर्णयेत् ॥ शमयेदनुपानेन आमशूलं प्रवाहिकाम् ॥ जम्बीरस्य रसै पिष्ट्वा रुद्धा सप्तपुटे पवेत् । शुद्ध पारा, अभ्रक भस्म और गन्धक समान गुन मधुनाज्येन लिह्याद्धन्ति भगन्दरम् ॥ भाग लेकर कजली बना कर उसे घृतसे चिकने मुसली लशुनं चामुं चारनालयुतं पिबेत् । किए हुवे लोहपात्रमें १ पहर तक मन्दाग्नि पर कर्तव्यो मधुराहारो दिवास्वप्नं च मैथुनम् ॥ पकाइये । पकाते समय लोहेको डण्डी आदिसे वर्जयेत् शीतलाहार रसे चित्रविभाण्डके ॥ चलाते रहना चाहिए । इसके पश्चात् उसे ३ शुद्ध पारद १ भाग और गन्धक २ भाग दिन तक जीरेके क्वाथमें घोटिए ।
भा० २९
For Private And Personal