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[ २२६]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[चकारादि
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इस “चित्राम्बर रस'को १ माशेकी मात्रा- (१९२३) चिन्तामणिरसगुटी नुसार सेवन करनेसे रक्तयुक्त संग्रहणा, आमशूल (शुद्ध चिन्तामणिः ) ( यो. चि. । गुटि.) और प्रवाहिका (पेचिश )का नाश होता है ।
व्योषं गन्धं रसेन्द्र विषमपि ( व्यवहारिक मात्रा-३--४ रत्ती । अनुपान जीरे
लवणं नागवङ्गं तथाभ्रम् । या कुड़ेकी छालका काढ़ा ।)
सारं त्रिक्षारयुक्तं गजकणचिन्तामणिचतुर्मुखरसः
चविकासाग्निक जीरके द्वे ।। ( भै. र.; धन्वन्त. । वा. व्या.) पथ्या वा चूर्ण मेतत्प्रबल चतुर्मुखरस सं. १८८१ देखिए ।
रसयुतं नागवल्लीकरीरम् ।
निम्बूकाट्टै रसादिप्रबल (१९२२) चिन्तामगिरसगुटिका
रसयुतं शुद्धचिन्तामणि रसः॥ ( यो. चि. म. । गुटिका अ.)
त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च, पीपल, ) शुद्ध पारा, मृतं गन्धकटङ्कणं समरिचं शुण्ठी विषं पिप्पली। शुद्ध गन्धक, शुद्र मीठा तेलिया, सेंधा नमक, स्वर्जीक्षारफलान्वितश्च लवणं पश्चाभ्रक सीसा भस्म, वङ्ग ( रांग ) भस्म, अभ्रक भस्म,
जीरकम् ।। लोह भस्म, सज्जीखार, जवाखार, सुहागेकी खील, यावक्षारसमं समांशकमिदं खल्वे शनैःशोषयेत। गजपीपल, चव, चीता, स्याहजीरा, सफेद जीरा स्थानिम्बूकभुजङ्गमाईकरसैःशुढेष चिन्तामणिः।। और हरेका समान भाग चूर्ण लेकर प्रथम पारे
गन्धककी कजली बना लीजिए तत्पश्चात् अन्य शुद्र पारा, शुद्ध गन्धक, सुहागेकी खील,
| ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर नागरवेलके पान, करीर, मिर्च, सोंठ, शुद्ध मीठा तेलिया, पीपल, सज्जीखार
नीबू और अद्रकके रसमें भली भांति घोट कर ( सोडा ), त्रिफला, पांचों नमक, ( सेवा, काला
सुखा लीजिए। नमक, समुद्र नमक, खारी नमक और काचलवण -कचलौना- ) अभ्रक भस्म, जीरा, और जवाखार
(प्रमेह तथा ज्वरमें १-२ रत्ती मात्रानुसार समान भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कजली
। शहदके साथ खिलाएं । बना लीजिए. तत्पश्चात अन्य ओषधियोंका चूर्ण (१९२४) चिन्तामणिरसः (१) मिला कर नीब , पान और अद्रकके रसकी सात (र. सा. सं.; र. रा. सुं.; धन्वं.; भै. र. । ज्वर.) सात भावना दीजिए।
रसविषगन्धकटङ्कणताम्रयवक्षारकं व्योषम् । ( यह आमज्वर, और सन्निपातमें प्रयुक्त दन्तीफलत्रयश्च क्षौद्रं दत्त्वा शतं वारान् । होता है । मात्रा १ रत्ती अनुपान----शहद और सम्मथ रक्तिमिता वटिकाःकार्या भिषग्भिःप्राज्ञैः। अदरकका रस ।)
शुण्ठीपिष्टेन सममेकां द्वे वाऽथवा तिस्रः॥
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