________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[२१२]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[चकारादि
می ره مه وه یه کی که به مه به نیه هه یه به یه به ره که به ما :
गोजिया, खिरनी, नीलका पौदा, ढाककी छाल, | घोरां तृष्णां ज्वरं दाहं मृी हिक्कां वमिं तमिम् रुदन्ति (रुद्रवन्ती), अगस्ति, नीम, मकोय, | हन्याचन्द्रसुधारोचं भुक्तये लाजलेपिका ॥३॥ कोयल और मोथेके स्वरस वा काथमें १-१ दिन स्वर्णसिन्दूर, ताम्रभस्म, वज्राऽभ्रकभस्म, वङ्गतप्त खल्वमें घोटें । अर्थात् लोहखरल तुषाग्नि पर । भस्म, लोहभस्म, स्वर्णमाक्षिक भस्म, भीमसेनी रखकर उसमें कजली डालकर इनके रसोंके साथ | कपूर । ये सब एक एक तोला ले कर मर्दन करे; पृथक पृथक् घोटें । इसके पश्चात् लोहेकी नागरमोथा, पित्तपापड़ा, खस, लाल चन्दन, नेत्रकढाइमें जरासा घी लगाकर उसे आग पर रखकर बाला, सोंठ । इनके काथकी तीन भावना दे। बाद, उसमें इस कज्जली को पिघलावें और पिघल जाने | भुनी हुई पीपल, मुनका, दाख, (काली दाख ) पर पर्पटी बनावें और उसमें शुद्ध गन्धकका चूर्ण | इलायचीके बीज, मुलहटी, इनको समान भाग ले
और सोनामक्खी भस्म प्रत्येक पर्पटी के बराबर कर कूट छानकर चूर्ण बना ले । इस चूर्ण में से मिलाकर उसे सहदेवी, विदारीकन्द, हस्तीकन्द, १ तोला लेकर और १ तो० शहद और मिश्री गिलोय, और मुण्डी के स्वरस तथा दशमूलके भी मिलाकर दो रत्ती चन्द्रसुधा रसमें से लेकर काथमें एक दिन घोट कर गोलियां बना लीजिए चाटे । इसके चाटने से बड़ी उग्र पिपासा, ज्वर,
और फिर बन्दालका पञ्चाङ्ग और इन्द्रायणका | दाह, मूर्छा, हिचकी, वमन, ग्लानि, अरुचि नष्ट पञ्चाङ्ग छायामें सुखाकर चूर्ण करके वह चूर्ण | हो जाती हैं। भोजनमें धान की खीलोंका पतला तथा त्रिफला और बाबचीका चूर्ण समान भाग दलिया खाय । जो मीठे पर रुचि हो तो मिश्री मिलाकर रक्खें।
डालकर बनावे, या नमकीन बनावे ॥ ३ ॥ उपरोक्त गोलियां खा कर ऊपरसे मनुष्य के (रसायनसार से उद्धृत) मूत्रके साथ यह चूर्ण खानेसे शतारुष्क और गल- (१८९७) चन्द्रसूर्यरसः ( चन्द्रसूर्योदयः ) त्कुष्ट नष्ट होता है।
(र. र. स.। अ. १२) ( मात्रा=रसकी मात्रा २ रत्ती, चूर्णकी १॥ तुत्थेन तुल्यः शिवजश्च गन्धो माशा ।)
____ जम्बीरनीरेण विमर्दनीयः । (१८९६) चन्द्रसुधा रसः ( रसा. सा.) । दिनत्रयं मेलय तेन तुल्यं स्वर्णसिन्दरताम्राभ्रवङ्गलोहकमाक्षिकाः। व्योषं ततः सिद्धयति चन्द्रसूर्यः ॥ भस्मितास्तुल्यमानास्ते भीमसेनेन्दुमर्दिताः ॥१ बल्लो विजेतुं विषमावलम्ब मुस्तकपर्पटकोशीरचन्दनोदीच्यनागरै।
दलेन देयो भुजगाख्यबल्ल्याः । र्भाविताखिस्ततःकृष्णाद्राक्षलायष्टिमाक्षिकैः ॥२ दुग्धं हितं स्पादिह शङ्गवेरं ससितैरवलीढास्ते रनिकायमात्रकाः। । रसेन शैत्येषु निषेवणीयः
For Private And Personal