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रसप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः।
[ २१३ ] तकं सगर्भा ज्वरशूलयोस्तु
काथके साथ देना चाहिए और पथ्यमें घृतयुक्त द्राक्षाम्बुना पथ्यमनन्तरोक्तम् । भात देना चाहिए तथा शरीर पर नीमके पत्तोंका रोधं वरायाः सलिलेन, शुलम्
कल्क, और घी मिलाकर मालिश करनी चाहिए। जम्बीरनीरेण, वरा-जलेन ।
इसे जम्बीरी नीबूके साथ सेवन करनेसे गुल्म अपस्मृतावत्र नियोजनीय
नष्ट होता है । तिल्ली रोगमें नीबूके रसमें हींग ___मभ्यञ्जनं निम्बपयोभवाभ्याम् । | और इमलीके रस को मिलाकर उसके साथ सेवन घृतौदनं स्पादिह भोजनाय
कराना तथा तक भातका आहार कराना चाहिए। जम्बीरनीरेण निहन्ति गुल्मम् ॥ स्तम्भनके लिए मिश्री युक्त दूधके साथ हिंग्वम्लिकानिम्बुरसेन देयं
और वमनको रोकने के लिए गुड़मिश्रित दूधके प्लीहोदरे स्थादिह तक्रभक्तः। । साथ देना चाहिए। स्तम्भार्थमस्मिन्ससितं पयः स्याद्
(८० वर्षसे अधिक और ८ वर्षसे कम गुडो नियोज्यो वमनप्रशान्त्यै ॥ अवस्था के रोगी को विषमिश्रित औषध देना (अशीतिर्यस्य वर्षाणि वसुवर्षाणि यस्य वा। हानिकारक होता है।) विषौषधं न दातव्यं दतं चेद्दोषकारकम् ।।) (१८९८) चन्द्र सूर्यात्मको रसः ___शुद्ध नीला थोथा, शुद्र पारद और शुद्ध (भै.र.; र. सा.सं.; धन्वं., र.रा. सु.। पाण्डुकामला) गन्धकको ३ दिन पर्यन्त जम्बीरी गीबूके रसमें
सतकं गन्धकं लोहमभ्रकश्च पलं पलम् । घोटकर उसमें उस सबके बराबर सोंठ, मिर्च और
शङ्खटङ्गवराटश्च प्रत्येकापलं हरेत् ।। पीपल का चूर्ण मिलाइये । इसका नाम " चन्द्र
गोक्षुरवीजचूर्णश्च पलैकं तत्र दीयते । सूर्य रस" है।
सर्व कीकृतं चूर्ण वाष्पयन्त्रे विभावयेत् ॥ ___इसे विषमज्वरमें नागरबेलके पानके साथ पटोलं पर्पटं भार्गी विदारी शतपुष्पिका । देना चाहिए और आहारमें दूध पिलाना चाहिए। कुण्डली दण्डिनी वासा काकमाचीन्द्रवारुणी॥ __ शीतको दूर करनेके लिए अदरक के रसके |
वर्षाभूःकेशराजश्च शालिश्च द्रोणपुष्पिका। साथ खिलाना और तक देना चाहिए।
प्रत्येकाईपलैवैर्भावयिता वटीं कुरु ।। सगर्भा स्त्री के ज्वर और शूलमें द्राक्षा (दाख- चतुर्दशवटी खादेच्छागीदुग्धानुपानतः । मुनक्का) के रसके साथ देना और तक पिलाना | गहनानन्दनाथोक्तश्चन्द्रसूर्यात्मको रसः ।। चाहिए।
हलीमकं निहन्त्याशु पाण्डुरोगश्च कामलाम् । ___ मलावरोध ( कब्ज) में त्रिफलाके क्वाथके जीर्णज्वरं सविषमं रक्तपित्तमरोचकम् ॥ साथ और शूलमें जम्बीरी नीबूके रसके साथ देना शुलं प्लीहोदरानाहमष्ठीलागुल्मविद्रधीन् । चाहिए । अपस्मार (मिरगी) में भी त्रिफलाके शोथं मन्दानलं कासं श्वासं हिक्कां वर्मि भ्रमिम्॥
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