SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org रसप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः । [ २११] १ निष्क ( ५ माशे ) जीरके चूर्णके साथ | (१८९४) चन्द्ररुद्रो रसः (र. रा. सुं. । कुष्ठ.) प्रतिदिन १-१ गोली (शहद में मिलाकर) खाने से त्रिदोषज रातिसार नष्ट होता है । (१८९३) चन्द्रप्रभा वटी (४) (र. रा. सुं.; धन्वं; र. सा. सं. । प्रमे.; रसें. चि. म. । अ. ९ ) एकवीरा शंखपुष्पी गोजिह्वा हरिणी खुरी । विष्णुक्रान्ता कण्टकारी जीवन्ति क्षीरी सारिवा ॥ मेघनादो देवदारू ब्राह्मी वीरा तु दन्तिका । ( अग्रे चण्डरुद्ररसवत् ) मृतमृताभ्रकं लौह नागं व समं समम् । एलाबीजं लवङ्गञ्च जातीकोषफलन्तथा ॥ मधूकं मधुयष्टिश्च धात्री दाडिमशीरा । कर्पूरं खादिरं सारं शताह्वा कण्ट हारिका ॥ अम्लवेतसकं तुल्यं दिनैकं लाङ्गलीद्रवैः । भावन्नेषदुग्धेन नागवल्ला रसैर्दिनम् ॥ टिका वदरास्थ्यमा कार्या चन्द्रमा परा । भक्षयेद्वटिकामेकां सर्व मेहकुलान्तिकाम् ॥ धात्रीपटोलपत्रं वा कषायं वा मृतायुतम् । क्षौद्रं भक्षयेचा सर्वप्रशान्तये ॥ पारद भस्म(अभात्रमें रस सिन्दूर), अभ्रक भस्म, लोह भस्म, सीसा भस्म, बङ्गभस्म, इलायची के बीज, लौंग, जावित्री, जायफल, महुवा, रलैी, आमला, अनारदाना, मिश्री, कपूर, खैरसार, सौंफ, कटैली और अम्लवेतका चूर्ण समान भाग लेकर सबको लाङ्गली (कलिहारी) के रस, भेड़के दूध और पान के रसमें १-१ दिन पर्यन्त घोटकर बेरकी गुठली के समान गोलियां बना लीजिए । प्रतिदिन आमले के रस, पटोपत्रके काथ अथवा गिलोयके काथ में शहद मिलाकर उसके साथ १-१ गोली सेवन करनेसे सर्व प्रकार के प्रवेश नष्ट होते हैं । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir सं. १८७५ ' चण्डरुद्र' रसमें पारे को जिन चीज़ों में घोटने के लिए लिखा है यदि उनके अतिरिक्त निम्न ओषधियों में भी घोटा जाय तो उसी रसका नाम 44 चन्द्ररुद्र " रस हो जाता है । ककोड़ा, शंखपुष्पी, गोजिया शाक, हरिनखुरी, विष्णुक्रान्ता, कटेली, जीवन्ति, क्षीरकाकोली, सारिवा, चौलाई, देवदारु, ब्राह्मी, शतावर और दन्तीमूल । (१८९५) चन्द्रशेखरो रसः (र. का. धे. । कुष्ठ.) शुद्ध द्विधा गन्धं सर्पाक्षी शङ्खपुष्पिका । गोजिह्वा क्षीरिणी नीली पलाशञ्च रुदन्तिका ।। सुनिर्निम्बः काकमाची विष्णुक्रान्ता च मुस्तकम् । सर्व सम्मर्दयेद्रावैदिक तप्तखल्वके ॥ पर्पटीरसवत्पाच्यं गन्धं ताप्यं क्षिपेत्पुनः । प्रत्येकं पर्पटीतुल्यं सहदेवी विदारिका ।। हस्तीकन्दामृतामुण्डीद्रवैस्तं मर्दये दिनम् । कषाये दशमूलस्य पुटेन्तुल्येन पिण्डितम् ॥ समूलपत्रशाखाश्च देवदालीं विचूर्णिताम् । त्रिफलां बाकुचीबीजं पञ्चाङ्गोत्तरवारुणीम् ।। छायाशुष्कं समं चूर्ण मूत्रेण पिवेत्सदा । शतारुके गलकुठे हयनुपानं सुखावहम् || १ भाग शुद्ध पारा और दो भाग शुद्ध गन्धकको कजली करके उसे सर्पाक्षी, शंखपुष्पी, For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy