SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अञ्जनप्रकरणम् ] द्वितोयो भागः। [ १९३] (१८५५) चन्द्रप्रभावतिः चूर्णको बकरीके मूत्रमें पीसकर बत्तियां बनाकर (च. द; ग. नि: व. मा.; धन्वं; र. र. । नेत्र.) छायामें सुखा लीजिए। अञ्जनं श्वेतमरिचं पिप्पली मधुयष्टिका। इन्हें पानीमें पीसकर आंखमें आंजनेसे तिमिर, विभीतकस्य मध्यन्तु शङ्खनाभिर्मनःशिला ॥ गोमूत्रमें पीसकर आंजनेसे पिष्टक, शहद के साथ एतानि समभागानि अजाक्षीरेण पेपयेत् । आंजनेसे पटल, और स्त्री के दूधमें घिसकर आंजने छायाशुष्कां कृतां वतिः नेत्रेषु च प्रयोजयेत् ॥ स से फूला नष्ट होता है। अर्बुदं पटलं काचं तिमिरं रक्तरानिकाम। (१८५७) चन्द्रोदया वर्तिः अधिमांसं मलञ्चैव यश्च रात्रौ न पश्यति॥ (च. द.; भै, र.; वृं. मा.; वं. से.; र. र.; वर्तिश्चन्द्रप्रभानाम जातान्ध्यमपि शोधयेत् ॥ ग. नि.; भा. प्र. म. ख.। नेत्र.; यो. त. । त. ५१) सुरमा, सहजनेके बीज, पीपल, मुलैठी, बहेड़े हरीतकी वचा कुष्ठं पिप्पली मरिचानि च। की मज्जा (गुठलीके भीतर की गिरी), शंखकी विभीतकस्थ मज्जा च शङ्खनाभिर्मनःशिला। नाभि और मनसिल समान भाग लेकर महीन चूर्ण | सर्वमेतत्समं कृत्वा गव्यक्षीरेण पेषयेत् । करके बकरीके दूधमें धोटकर बत्तियां बना लीजिए नाशयेतिमिरं कण्डूपटलान्यर्बुदानि च ॥ और छायामें सुखाकर काममें लाइये। अपि त्रिवार्षिकं शुक्रं मासेनैकेन नाशयेत् । इस 'चन्द्रप्रभावर्ति' को ( पानीमें घिसकर) अधिकानि च मांसानि रात्रावन्धत्वमेव च ।। आंखमें आंजनेसे नेत्राबुद, पटल, काच, तिमिर, हर्र वच, कूठ, पीपल, काली मिर्च, बहेडेकी लाल रेखाएं, अधिमांस और नक्तान्ध्य ( रतौंवे ) मज्जा ( गुठलीके भीतरकी गिरी ) शंखनाभि और का नाश होता है। मनसिल का समान भाग चूर्ण लेकर गोदुग्धमें (१८५६) चन्द्रप्रभावत्तिः पीसकर बत्तियां बनाकर छायामें सुखा लीजिए । (यो. र.; भा. प्र. ख. २। नेत्र.) इन्हें (पानी में घिसकर) आंखमें आंजनेसे रजनी निम्बपत्राणि पिप्पली मरिचानि च। तिमिर, खुजली, पटलरोग, अर्बुद, अधिमांस और विडङ्गं भद्रमुस्तं च सप्तमी त्वभया स्मृता । नक्तान्ध्य ( रतौंधे ) का नाश होता है। इनके अजामूत्रेण संपिष्य छायायां शोषयेद्वटीम्। उपयोगसे ३ वर्षका पुराना शुक्र (फूला) १ मास वारिणा ति.मेरं हन्ति गोमूत्रेण तु पिष्टकम् ॥ में ही नष्ट हो जाता है मधुना पटलं हन्ति नारीक्षीरेण पुष्पकम् । (१८५८) चन्द्रोदया वतिः (लघु) एषा चन्द्रप्रभावर्तिः स्वयं रुद्रेण निर्मिता॥ (ग. नि; यो. र.; वृ. नि. र. । नेत्र.) हदी, नीमके पत्ते, पीपल, मिर्च, बायबिडङ्ग | रसाञ्जनं सशैलेयं कुङ्कम समनःशिलाम् । नागरमोथा और हरके समान भाग एकत्र मिश्रित । शङ्ख सश्वेतमरिचं शर्करा चात्र सप्तमी ।। भा० २५ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy