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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[चकारादि
(१८५१) चन्दनाद्यञ्जनम्
. कण्डूमण्डलकाचशुक्र ( वं. से.; र. र.; बूं. मा.; ग. नि., यो. र.; वृ. तिमिराम्भःस्रावपिल्लादिनुत् ।।
नि. र. । नेत्र.; वृ. यो. त. । त. १३१) मोतीकी भस्म, मिश्री, अभ्रकभस्म, गूगल, चन्दनं गैरिकं लाक्षा मालतीकलिका समाः। शुद्धखपरिया, श्वेतसुरमा, कस्तूरी, नीलाथोथा, तमुद्र व्रणशुक्रहरावर्तिः शोणितस्थ प्रणाशिनी ॥ फेन, शंखनाभि, पीपल, भांगरा और हर्र, बहेड़े,
सफेद चन्दन, गेरु, लाख और चमेलीकी | तथा आमले की मज्जा (गुठलीकी गिरी) का चूर्ण कली समान भाग लेकर पानीसे महीन पीसकर समान भाग लेकर जलसे पीसकर वर्तियां बना बत्तियां बना लीजिए।
लोजिए। इन्हें पानीमें घिसकर आंखों में आंजनेसे व्रण यह " चन्द्र कलावर्ति" तिमिर, खुजली, शुक्र नष्ट होता है।
मण्डल, काच, शुक्र, जलस्राव, और पिलादि नेत्र नोट-इसोका नाम "चतुर्भद्रिकावर्ति" है। । रोगों को नष्ट करती है। (१८५२) चन्दनाद्या वर्तिः (रा. मा. । नेत्र.) । (१८५४) चन्द्रप्रभागुटी ( ग. नि. । नेत्र.)
अरुणचन्दनमागधिकानिशाः त्रिफला सैन्धवं लौह चूर्ण त्रिकटुकं समम् । करकवीजयुता गगनाम्भसा। छागलीपयसा पकं छायाशुष्कं च तद्गुटी। समभिपेष्य कृता नयनामयान् | दुग्धघृष्टा भृता नेत्रे पुष्पहृत्काचिकेन सा। हरति वर्तिरुदीर्णतरानपि ।। तिमिरं मधुना हन्ति पटलं च शिवाम्भसा॥
लाल चादन पीपल, हल्दी और नाटा करञ्जके | निशान्ध्य कामलां हन्ति काकमाचीरसप्लुता। बीजोंके समान भाग चूर्णको आकाश जल ( भूमिसे रम्भाम्भसा च श्वयधुं गुटी चन्द्रप्रभाभिधा ।। ऊपरही स्वच्छतापूर्वक ग्रहण किये हुवे वर्षाजल )
हर, बहेडा, आमला, सेंधानमक लोहचूर्ण, में पीसकर बत्तियां बना लीजिए।
सोंठ, मिर्च और पीपल । इन सबका समान भाग ____ इसे आंखमें आंजनेसे आंखोंके भयङ्कर रोग
चूर्ण लेकर बकरी के दूधमें पकाकर बत्तियां बना भी नष्ट हो जाते है।
कर छायामें सुखा लीजिए। (१८५३) चन्द्रकलावतिः
इन्हें दूधमें घिसकर आंखमें लगानेसे फूला, (वृ. यो. त. । त. १३१, यो. त. त. ७१) काञ्जि में घिसकर लगानेसे तिमिर, शहदमें विसमुक्ताभस्मसिताभ्रपौररसकस्रोतोञ्जनैणाण्डजा। कर लगानेसे पटल, हर्रके रसके साथ घिसकर तुत्थाम्भोभवशङ्गनाभिचपलाभृङ्गोत्तमामज्जभिः।। लगानेसे रतौंधा, मकोयके रसमें घिसकर लगानेसे वर्तिश्चन्द्रकला निहन्ति
कामला और केलेके रसमें घिसकर लगानेसे सूजन तिमिरं चित्रं किमत्र स्फुटम्। | नष्ट होती है।
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