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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [१९४] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [चकारादि एषां चन्द्रोदया नाम वत्तिवैदेहनिर्मिता। शङ्ख धूर्ण ४ भाग, मनसिल २ भाग, स्याह हन्यात्पिल्लं च कण्डूं च तिमिरं चापि सेविता॥ मिर्चका चूर्ण १ भाग और सेंधा नमक आधा भाग रसौत, भूरी छरीला, केसर, मनसिल, शंख, लेकर महीन चूर्ण कर लीजिए। सफेद मिर्च (सहंजनेके बीज) और मिश्री । समान यह चूर्णाजन शुक्र और तिमिर रोगके भाग लेकर पानीसे महीन पीसकर बत्तियां बना लिए अत्यन्त उपयोगी है। लीजिए। इसे नेत्र पिञ्चट रोगमें शहद में मिलाकर और यह वैदेह निर्मित 'चन्द्रोदय वर्तिः' आंखों नेत्रावद रोगमें मस्तु के साथ लगाना चाहिए । के पिल्ल, खुजली, और तिमिर रोगका नाश (१८६१) चूर्णाञ्जनम् (र. र. । नेत्र.) करती है। रङ्कणं रसके पिटवा जन्धी कांस्पभाजने। (पानीसे घिसकर आंख में लगानी चाहिए।) पक्ष्मरोगहरं कण्ई रक्तस्रावश्च नाशयेत् ॥४९।। चातुर्भद्रिका वर्तिः (ग. नि. । नेत्र.) । मुहागेकी खील और शुद् खपरिया को चन्दनाद्यञ्जनम् देखिए। जन्बीरी नीके रसमें कोसीके पामें धोटकर (१८५९) चिश्चाद्यञ्जनम् (च. द, । ने. रो.) लगानेसे पक्ष्म (पलकके) रोग, खुजली, और रक्तचिश्चापत्ररसं निधाय विमले चौदुम्बरे भाजने। मूलं तत्रनिघृष्टसैन्धवयुतं गौड्यं विशोष्यातपे।। स्रावका नाश होता है। तचूर्ण विमलाञ्जनेन सहित नेत्राञ्जने शस्यते। १८६२) चूर्णाञ्जनम् (च.सं.चि.स्था.,वं.से.नेत्र.) काचार्मार्जुनपिचिटे तिमिरे सावञ्च निर्वासयेत ।। शाणार्द्ध मरिचं द्वौ च पिप्पल्पर्णवफेनयोः । गूलरकी लकड़ीके स्वच्छ पात्रमें इमलीके शाणा सैन्धवाच्छाणात्सौवीरस्थ जलेन च ।। पत्तोंका रस भरकर उसमें गुञ्जा (चौंटली)की जड़ पिटं सुमुक्ष्मं चित्रायां चूर्णाजनमिदं शुभम् । और सेंधा नमकका महीन चूर्ण मिलाकर धूपमें काचकण्डूकफार्तानां मलानाश्च विशोधनम् ।। रख दीजिए और सूख जानेपर उसमें श्वेताञ्जनका काली मिर्च आधी शाण, पीपल २ शाण, चूर्ण समान भाग मिलाकर खूब खरल कीजिए। समुद्रभाग २ शाण, सैं यव आधाशाण, और सौवी- इसे आंखमें आंजनेसे काच, अर्म अर्जुन, राजन १ शाण (५ माशे) लेकर महीन चूर्ण पिच्चिट तिमिर, और जलस्त्रावका नाश होता है । करके चित्रा नक्षत्रमें पानीके साथ खूब खरल (१८६०) चूर्णाञ्जनम् (वं. से. । नेत्र.) करके अजन बना लीजिए। शङ्खस्य भागाश्चत्वारस्ततोऽदैन मनःशिला। यह चूर्णाञ्जन' नेत्रोके काच, खुजली, मनःशिलार्ध मरिचं मरिचार्द्धन सैन्धवम्॥ कफरोग और मलको दूर करता है। एतचूर्णाञ्जनं श्रेष्ठं शुक्रयोस्तिमिरेषु च। इति चकारायञ्जनप्रकरणम् पिच्चटे मधुना योज्यमबुंदे मस्तुना तथा ॥ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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