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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir कषायप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [५] यदि चतुर्थ मासमें गर्भस्राव होता हो या गर्भिणी को तृष्णा, शूल, दाह और ज्वर हो जाय तो | सप्तमे मासि गर्भस्य चलनं जायते यदा। केलेकी जड़, नीलोफर और नेत्रबाला समान भाग | उशीरं गोक्षुरघनः समगा नागकेशरम् ॥ लेकर दूधमें पीसकर पिलाना चाहिए। सपद्मकं समधुना पाययेच्च विचक्षणः॥ . यदि सातवें मासमें गर्भपातका भय हो तो खस, गोखरू, नागरमोथा, मजीठ, नागकेशर और पञ्चमे मासि गर्भस्य चलनं कुत्रचिद्भवेत् ।। | पद्माखके चूर्ण ( अथवा कल्क ) को शहदमें मिलादना च मधुना पेयं दाडिमीपत्रचन्दनम् ॥ कर पिलाना चाहिए। नीलोत्पलं मृणालश्च कौन्ती क्षीरी तथैव च । केशरं पद्मकं चैव तोयेनाऽऽलोडय तत्पिबेत् ॥ एवं न पतते गर्भः स च शूल: प्रशाम्यति ॥ अष्टमे मासि चलनं गर्भस्थ यदि जायते । लोध्रमागधिकाचूर्ण मधुना पयसा पिबेत् ॥ यदि पांचवे मासमें गर्भपातका भय हो तो नवमे सुप्रसूतिः स्यादेवं गर्भस्य पोषणम् ॥ अनारके पत्ते और लाल चन्दनको पीस कर दही आठवें मासमें गर्भपात होता हो तो लोध और शहदमें मिलाकर सेवन कराना चाहिए। अथवा नीलोफर, कमलनाल, रेणुकाबीज, बिदारीकन्द, नाग और पीपलके चूर्णको शहद और दूधमें मिलाकर केशर और पद्माख को जलमें पीसकर पिलानेसे भी पिलाना चाहिए। इस प्रकार गर्भपोषण होकर नवम मासमें भली भांति प्रसव हो जाता है। गर्भपात रुक जाता है और गर्भिणीसा शूल शान्त होता है। । (११३६-५३ ) गर्भिणीशूलहरोपायाः (भै. र. । स्त्री. रो.) षष्ठे मासि तु गर्भस्य चलता जायते यदा। । प्रथमे मासि गर्भ तु यदा भवति वेदना। गैरिका गोमयं भस्म कृष्णा मृत्स्ना तथैव च ॥ चन्दनं शतपुष्पा च शर्करा मदयन्तिका ॥ एतेषां साधितं प्राज्ञभिषजा चामृतं तदा। एतानि समभागानि पिष्ट्या तण्डुलवारिणा । पेय शीतं परं साकं सितया चन्दनेन च ॥ पाययेत् पयसालोडय गर्भिणी मात्रया भिषक्॥ ___ यदि छठे मासमें गर्भपातकी आशङ्का हो तो | तथा तिलान् पकञ्च शालूकं शालितण्डुलान् । सोनागेरू, गोमय भस्म ( गायके गोबर की राख ) क्षीरेण पिष्ट्वा क्षीरेण सिताक्षौद्रान्वितेन च ॥ और काली मिट्टीसे सिद-जलमें मिश्री और चन्दन | आलोडव्य पाययेनारी ततः सम्पयते शुभम् । का चूर्ण मिलाकर पिलाना चाहिए। । तस्मिन्सुजीर्णे दातव्यं भोजनं क्षीरसंयुतम् ॥ . १ देयमिति साधुः। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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