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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[गकारादि
यदि गर्भिणीको प्रथम मासमें पीड़ा ( शूल) गर्भिगीको तीसरे मासमें गर्भशूल होनेपर, हो तो--लाल चन्दन, सौंफ, खांड (मिश्री), और क्षीरकाकोली, काकोली, और आमलेको उष्ण जलमें मोगरा (पुष्प विशेष ) समान भाग लेकर तण्डुल पीसकर पिलाना और औषध पचनेपर दुग्ध मिश्रित जलसे. पीसकर और दूधमें मिलाकर यथोचित् भात खिलाना चाहिए। मात्रानुसार पिलाना चाहिए । अथवा-तिल, पनाख, अथवा–कमल, नीलोफर, कूठ, कमलनाल कमलनाल और शालि तण्डुल (बासमती या साठीके और मिश्रीको जलमें पीसकर दूधमें मिलाकर पीनेसे चावल ) समान भाग लेकर दूधसे पीसकर और शूल शान्त होता है, और गर्भ व्यथित नहीं होता। दूधमें ही मिलाकर मिश्री तथा शहद डालकर
(४) पीनेसे भी लाभ होता है।
चतुर्थे तु विधानज्ञ पाययेदिदमौषधम् । औषधके भली भांति पच जाने पर क्षीरयुक्त
पिष्ट्वोत्पलश्च शालूकं कण्टकारी त्रिकण्टकम् ।। आहार देना चाहिए। नोट तण्डुल जलविनि,' प्रथम भागके
यथाग्निमात्रया काले गर्भिणी पयसा सह । परिशिष्टमें देखिए । .
तथा गोक्षुरकसिंहीं बालकं नीलमुत्पलम् ।।
पिष्ट्वा क्षीरेण पातव्यं गर्भशूलनिवारणम् ।। द्वितीये मासि गर्भे तु यदा भवति वेदना । गर्भिगीको चतुर्थ मासमें पीड़ा होने लगे तो तदोत्पलस्थ कलकन्तु शृङ्गाटककसेरुकम्॥ नीलोफर, कमलनाल, कटेली और गोखरुको दृधमें तण्डुलोदकपिष्टन्तु पाययेत्तण्डुलाम्बुना। पीसकर अग्निबलानुसार पिलाना चाहिए। निवार्य गर्भशूलश्च स्थिरं गर्भ करोति च ॥ अथवा-गोखरु, कटेली, नेत्रबाला और नीलो
___ यदि गर्भके दूसरे मासमें गर्भिणीको पीड़ा फरको दृधमें पीसकर पिलाना चाहिए। होने लगे तो नीलोफर, सिंघाड़ा और कसेरुको तण्डुल-जलमें पीसकर तण्डुल जल (चावलों के
पश्चमे मासि गर्भे तु यदा भवति वेदना। पानी धोबन-) के साथ ही पिलानेसे गर्भशूल नष्ट होकर गर्भ स्थिर हो जाता है।
तत्र नीलोत्पलं वीरां पिष्ट्वा क्षीरेण पाचनम् ॥
घृतक्षौद्रान्वितं पीत्वा गर्भस्य च रुजां हरेत् । ततीये श्रीरकाकोली काकोल्यामलकीफलम। तथा नीलोत्पलं नारी काकोली समभागिकम् ॥ पिनमगोदकेनैतत्पाययेत गर्भिणी भिषक ॥ शीततोयेन पिष्ट्वा च क्षीरेणालोडय पाययेत । शाल्यानं पयसा जीर्णे भोजयेदनु गर्भिणीम्। अनेन विधिना गर्भस्थिरः स्याद्वक् प्रशाम्यति ॥ तथा पमोत्पलं कुष्ठं शालूकश्च समांशिकम् ॥ गर्भिणीको पांचवे महीनेमें शूल उत्पन्न हो तो सितोदकेन पिष्वा तु क्षीरेणालोडय पाययेत्। नीलोफर और खसको दृधमें पकाकर और उसमें तेन शूलं निवर्तत न गर्भो व्यथते ध्रुवम् ॥ . घृत तथा शहद मिलाकर पिलाना चाहिए।
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