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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra और सोंठ | [ ४ ] (११) क्षीरकाकोली, नीलोफर, मजीठकी जड़, www.kobatirth.org भारत 1- भैषज्य ( १९२८ - ३५) गर्भरक्षका योगाः (यो. र. । योनि ० ) २ - प्रयोगकी सब ओषधियां समान भाग मिलाकर २ तोले लीजिए और उसमें १६ तोले दूध तथा ६४ तो० पानी मिलाकर दुग्ध शेष रहने तक पकाइये | ) (१२) मिश्री, बिदारीकन्द, काकोली, क्षीरकाकोली और कमलनाल । द्वितीये मासि गर्भस्य चलनश्च भवेद्यदि । पयसा च तदा पेयं मृणालं नागकेशरंम् ॥ तगरं कमलं बिल्वं कर्पूरेण समन्वितम् । (प्र० वि०-१-घृत अथवा मिश्रीको पीनेके अजाक्षीरेण तत्पिष्ट्वा क्षीरेणाऽऽलोड्य पूर्ववत् ॥ समय मिलाना चाहिए । (१) चलनं प्रथमे मासि गर्भस्थ यदि जायते । औषधञ्च तदा देयं विचक्षण भिषग्वरैः ॥ मृद्वीका ज्येष्ठका चैव चन्दनं रक्तचन्दनम् । गवाश्च पयसा पेयं स्थिरता जायते ध्रुवम् ॥ नीलोत्पलं सबालञ्च शृङ्गाटश्च कसेरुकम् । शीततोयेन विष्ट्वा तु क्षीरेणाऽलोडच तत्पिवेत् ॥ एवं न पतते गर्भः स च शूलः प्रशाम्यति ॥ - रत्नाकरः यदि प्रथम मास में गर्भस्राव होता हो तो चतुर चिकित्सकको चाहिए कि-गर्भिणीको-मुनक्का, मुलैठी, सफेद चन्दन, और लाल चन्दन को गोदुग्धमें पकाकर पिलाए। इससे अवश्य ही गर्भ स्थिर हो जाता है। अथवा नीलोफर, नेत्रवाला, सिंघाड़ा और कसेरुको शीतल जलमें पीसकर, दूधमें मिला कर पीने से भी गर्भस्राव और गर्भिणीका शूल रुक है। Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ गकारादि यदि दूसरे मास में गर्भस्त्राव होता हो तो कमलनाल और नागकेसरको दूधमें पीसकर अथवा तगर, कमल, बेलगिरी और कपूरको बकरीके दूध में पीसकर और फिर (गो) दुग्धमें मिलाकर पीना चाहिए । (३) तृतीये मासि चलनं जायते गर्भजं यदि । पसाssलोडितं पेयं शर्करानाग केशरम् ॥ पद्मकं चन्दनं चैव बालकं पद्मनालकम् । पिष्ट्वा शीतेन तोयेन क्षीरेणाऽऽलोड्य तत्पिवेत् ।। एवं न पतते गर्भः स च शूलः प्रशाम्यति ।। यदि तीसरे मास में गर्भस्त्राव होता हो तो मिश्री और नागकेशरको दूधमें पीसकर पिलाना चाहिए अथवा – पद्माख, लाल चन्दन, नेत्रबाला और पद्मनालको ठण्डे पानी में पीसकर दूध में मिलाकर पीनेसे भी गर्भस्राव और गर्भिणीका शूल शान्त होता है । For Private And Personal (४) यदिगर्भस्य चलनं चतुर्थे मासि जायते । तृष्णाशूल विदाहैश्च ज्वरेण च निपीडनम् ॥ क्षीरच कदलीमूलमुत्पलं बालकं तथा । आलोड्य समभागेन पिबेद्रोगोपशान्तये ||
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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