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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir कषायप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [३] गिलोयकी जड़को पुष्य नक्षत्रमें उखाड़ कर गर्भिणी द्वादशेमासि पिबेच्छलनमौषधम् ॥ (पीसकर) पीनेसे ६ मास तक सर्पदंशका भय नहीं एवमाप्यायते गर्भस्तीबारुकचोपशाम्यति ॥ रहता फिर बिच्छू आदि तो हैं ही किस गणनामें । निम्नलिखित १२ प्रयोगोंसे सिद्ध दुग्ध क्रमशः ___ यदि सर्प काटनेके पश्चात् शरीर श्यामवर्ण । पहिले, दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें छठे, सातवें न हो गया हो तो गिलोयकी जड़को धिसकर नस्य आठवें, नवें, दसवें, ग्यारहवें और बारहवें मासमें लेने, अञ्जन लगाने, लेप करने और पीनेसे विष नष्ट होने वाले गर्भस्राव, गर्भपात और गर्भिणीके शूलको हो जाता है। । शान्त, एवं गर्भको पुष्ट करता है(१११६ २७) गर्भरक्षका योगाः (१) मुलेठी, सागोनके बीज, क्षीरकाकोली (यो. र.। यो. रो.; यो. त. । त. ७५) और देवदारु । (१) मधुकं शाकबीजञ्च पयस्यां सुरदारु च। (२) पत्थरचटा, काले तिल, मजीठ और (२) अश्मन्तकः कृष्णतिलास्ताम्रवल्ली शतावरी।। शतावर । (३) वृक्षादनी पयस्यां चलता चोत्पलसारिवा। (३) बन्दा, क्षीरकाकोली, नीलोफर और (४) अनन्ता सारिवा रास्ता पमा मधुकमेव च ॥ सारिवा । (५) वृहतीद्वय काश्मर्यक्षीरिभृङ्गास्त्वचो घृतम् । (४) अनन्तगूल, सारिवा, रास्ना (रायसनाय ), (६) पृश्निपर्णी बलाशिनःश्वदंशामधुपर्णिका॥ पद्मा (मजीठ या कमलनाल) और मुलैठी। (७) शृङ्गाटकं विसं द्राक्षा कसेरु मध सिता। (५) कटेली, कटेला, खम्भारीकी छाल (वा सप्तैतान्पयसायोगानर्धश्लोकसमापितान् ॥ फल ), क्षीरकाकोली, भंगरा, दारचीनी और धी। क्रमात्सप्तसु मासेषु गर्भे स्रवति योजयेत। (६) पृष्ठपर्णी (कबरा), खरैटी, सहजनेकी (८) कपित्थ बिल्ववृहतीपटोलेक्षुनिदिग्धिजैः॥ छाल, गोखरु और खम्भारी ( अथवा गिलोय )। . . (७) सिंघाड़ा, कमलनाल, मुनका, कसेरु, ____ मूलैः शृतं प्रयुञ्जीत क्षीरं मासे तथाऽटमे। - मुलैठी और मिश्री। (९) नवमे मधुकानन्तापयस्थासारिवाःपियेत् ॥ सारिखापत् ।। (८) कैथकी छाल, बेलगिरी, कटेला, पटोल(१०)क्षीरं शुण्ठीपयस्याभ्यां सिद्धंस्थादशमेहितम्। पत्र, इखकी जड़ और कटेलीकी जड़। सक्षीरावा हिता शुण्ठी मधुकं सुरदारु च ॥ (९) मुलैठी, अनन्तमूल, क्षीरकाकोली और (११)क्षीरिकामुत्पलं दुग्धं समझामूलकं शिवाम्। सारिवा । पिबेदेकादशे मासि गर्भिणी शूलशान्तये॥ (१०) सांड और क्षीरकाकोली । अथवा सोंठ, (१२)सिताविदारिकाकोलीक्षीरिकाश्चमृणालिकाः। मुलैठी और देवदारु ।। (पिछले पृष्ठका नोट) १ परिपीयमानमिति पाठभेदः । २ पयसेति पाठान्तरम् । ३ वयस्यति पाठान्तरम्। ४ कृष्णति पाठान्तरम् । ५ शृङ्गेति च पाठः। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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