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घृतप्रकरणम्
द्वितीयो भागः।
चाङ्गेरी (चूका) के स्वरस, बेरके काथ और । अतिसारोंका नाश करता और अग्निको दीप दही तथा जवाखार और सोंठके क-कसे सिद्घृत करता है । पीनेसे कांच निकलनेकी पीड़ा शान्त होती है। (१७७३) चाङ्गेरीधृतम् ( बृहद ) (बंगसेन में इस घृतको शुलयुक्त अतिसार
(वं. से. । ग्रहण्या.) नाशक लिखा है।)
पिप्पली नागरं पाठा श्वदंष्ट्रा च पृथक् पृथक् । (१७७२) चाङ्गरीवृतम् ( वं. से. । ग्रह.) भागांत्रिपलिकान्दत्वा कषायमुपकल्पयेत् ।। चाङ्गेरीस्वरसे दद्याद् घृतप्रस्थं चतुर्गुणः गण्डारी पिप्पलीमूलं व्योषं चम्पकचित्रकम् । अजाक्षीरस्य च प्रस्थं पचेत्सपिरिहौषधैः। पिष्ट्वा कल्कं क्षिपेत्काथे द्रव्यैरपलै पृथक् ॥ व्योपविल्वकपित्थानि समगा धातकी घनम् , पलानि सर्पिषश्चात्र चत्वारिंशत्प्रदापयेत् ।। अजाज्यतिविषा मोचा धान्यकोत्पलबाल कम् ॥ चाङ्गेरीस्वरसं तुल्यं सर्पिषा दधि षड्गुणम् ॥ बलायवानिकाग्निश्च पाठाग्रन्थिकदाडिमम् , मृद्वग्निना साधयेत्तत्सर्पिःसिद्धं निधापयेत् । अक्षप्रमाणैरेतैस्तु सर्पिः सिद्धं महागुणम् । तदाहारे विधातव्यं पाने च यौगिकैर्बुधैः ।। ग्रहण्य विकारनं शूलगुल्मज्वरापहम् , | ग्रहण्यशोविकारघ्नं गुल्महृद्रोगनाशनम् । कफवातारुचिहरं वलवर्णाग्नि वर्धनम् ।। शोथप्लीहोदरानझे मूत्रकृच्छ्रज्वरापहम् ॥ कृमिदोषगुदभ्रंशयकृत्प्लीहामयापहम् . कासहिकारुचिश्वाससदनं पार्श्वभूलनुत् । सर्वातिसारशमनं ग्रहणीदीपनं परम् ॥ बलपुष्टिवर्णकरमग्निसन्दीपनं परम् ॥
चाङ्गेरी (चूका-तिपतिया )का स्वरस १ पीपल, सोंठ, पाठा और गोखरु ३-३ पल सेर, धी १ सेर, बकरीका दूध १ सेर ( और (१५–१५ तोले ) ले कर १६ गुने ( १९२ पानी ४ सेर ) तथा सोंठ, मिर्च, पीपल, कच्ची पल ) पानीमें पका लीजिए, जब ४८ पल ( ३ वेल, कैथ, मजीठ, धायके फूल, मोथा, जीरा, सेर ) पानी शेष रह जाय तो उतार कर छान अतीस, मोचरस, धनिया, नीलोफर, नेत्रबाला, | लीजिए और उसमें कचनार, पीपलामूल, त्रिकुटा खरैटी, अजवायन, चीता, पाठा, पीपलाभूल, और चव, और चीताका कल्क आधा आधा पल अनारदानेका क-क १-१ कर्ष (११-१। तोला) । (२॥ २॥ तोले ) और ४० पल घी, ४० पल लेकर यथाविधि घृत पका लीजिए।
चाङ्गेरी (चूका-तिपतिया ) का स्वरस और यह अत्यन्त गुणशाली वृत ग्रहणी, बवासीर, २४० पल दही मिलाकर मन्दाग्नि पर पका शूल, गुल्म, ज्वर, कफ, वायु और अरुचिनाशक लीजिए । तथा बल, वर्ण और जठराग्नि वर्द्धक है । इसके इसे यथोचित अनुपानके साथ पिलाने और अतिरिक्त कृमिरोग, गुदभ्रंश (कांच निकलना), भोजनमें खिलानेसे ग्रहणी, बवासीर, गुल्म, हृद्रोग, तिल्ली और जिगरके रोग तथा सर्व प्रकारके शोथ, तिल्लो, मूत्रकृच्छ्र, ज्वर, खांसी, हिचकी,
भा० २२
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