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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir चूर्णप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [१६१] vvvvvvvvvvvv (१७५४) चित्रकलहः (वं.से.उदर. ग. नि.लेहा.) (१७५५) चित्रकहरीतकी चित्रकस्य शतं दद्यात्ततुल्यो ग्रन्धिको मतः। ( यो. र.; भै. र.; वं. मा.; च. द.; धन्वं. । नासा. पञ्चाशदृशमूलस्य शेषान् पञ्चपलान् पृथक। यो. त. । त. ७२, ग. नि. । ले.) बलां भाी शठी पाठां पौष्कर मूलभेव च। चित्रकस्थामलक्याश्च गुडूच्या दशमूलजम् । चतुर्दोणेऽम्भसा पक्त्वा द्रोणशेषे तथैव च ॥ | शतं शतं रसं दत्वा पथ्याचूर्णाहकं गुडात् ॥ पचेद्गुडशतं दत्वा लेहवंत्साधु साधयेत् । शतं पचेद्धनीभूते पलद्वादशकं क्षिपेत् । चतुष्पलं तु पिप्पल्यास्तुगाक्षीर्याःपलद्वयम् ॥ व्योषत्रिजातयोः क्षारात्पलार्धमपरेऽहि ॥ त्रिजाताच पलं चैकं मरिचस्य पलं तथा।। प्रस्थाई मधुनो दत्वा यथान्यद्यादयन्त्रणः। सूक्ष्मचूर्ण ततः कृत्वा दा सम्यग्विघट्टयेत्॥ वृद्धयेऽग्नेः क्षयं कासं पीनसं दुस्तरं कृमीन्॥ पलमात्रं ततः खादेत्प्लीहगुल्मोदराशंसाम्। गुल्मोदावर्तदुर्नामश्वासान् हन्ति सुदारुणान् । हन्ति यक्ष्माणमत्युग्रं शीताति चाम्लपित्तकम्॥ चीता और दशमूलका काथ तथा आमले भारद्वाजेन कथितो लेहश्चित्रकसंज्ञकः ॥ और गिलोयका रस (अथवा क्वाथ) १००-१०० चीता और पीपलामूल १००-१०० पल पल ( ६। सेर प्रत्येक ) गुड़ १०० पल और (प्रत्येक ६। सेर), दशमूल ५० पल, और खरैटी, हर्रका चूर्ण ४ सेर ( ३२० तो० ) लेकर एकत्र भारंगी, कचूर, पाठा और पोखरमूल ५-५ पल मिलाकर पकाइये. और गाढ़ा हो जाने पर उसमें लेकर अधकुट करके सबको ४ द्रोण (६४ सेर) सोंठ, मिर्च, पीपल, दालचीनी, तेजपात, इलायचीका पानीमें पकाइये । जब १ द्रोग जल शेष रह जाय चूर्ण १२ पल ( प्रत्येकका चूर्ण २ पल-१० तो उसे छानकर उसमें १०० पल (६। सेर) तोले-) और यवक्षार आधा पल मिला दीजिए तथा गुड़ मिलाकर पुनः पकाइये और अवलेह तैयार दूसरे दिन आधा प्रस्थ (४० तो०) शहद हो जाने पर उसमें ४ पल (२० तोले) पीपलका मिलाकर रखिए। चूर्ण, २ पल वंसलोचनका चूर्ण और १-१- पल इसे अग्नि बलानुसार सेवन करनेसे क्षय, दारचीनी, तेजपात, इलायची, तथा मरिचका महीन खांसी, दुस्तरपीनस, कृमि, गुल्म, उदावर्त बवाचूर्ण डालकर करछलीसे खूब घोटिए । सीर, और भयङ्कर श्वासका नाश तथा अग्निवृद्धि महर्षि भारद्वाज कल्पित यह चित्रक लेह | होती है। प्लीहा, गुल्म, उदररोग, अर्श, भयङ्कर यक्ष्मा, शीत नोट-यो. र. क. और यो. त. के मतानुऔर अम्लपित्तका नाश करता है। सार दशमूलके स्थानमें पञ्चमूल लेना चाहिए और मात्रा--१ पल (५ तोले)। चारों चीजोंको ४ द्रोण पानीमें पकाकर १ द्रोण ( व्यवहारिक मात्रा १ तोला । अनुपान शेष रखना चाहिए । तथा शुण्ठ्यादि ६ द्रव्य उष्णजल।) ६ पल मिलाने चाहिएं। भा०२१ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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