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________________ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra [ १६२ ] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [चकारादि (१७५६) चित्रकादिभल्लातकावलेहः ( काला नमक ) और बायबिडंगका चूर्ण १-१ (वं. से. । अर्श. ) पल ( ५ तोले ) तथा ४-४ पल विधारे और चित्रकं त्रिफला मुस्तं ग्रन्थिकञ्चविकामृता। तालमूली ( ताल वृक्षकी मूसली )का चूर्ण और हस्तिपिप्पल्यपामार्गदण्डोत्पलकुठेरकाः॥ ८ पल जिमीकन्दका चूर्ण मिलाकर ठण्डा करके एषां चतुष्पलान् भागाञ्जलद्रोणे विपाचयेत् । उसमें आधा सेर शहद मिलाकर चिकने पात्रमें भल्लातकसहस्रे द्वे छित्वा तत्रैव दापयेत् ॥ । भरकर रख दीजिए । तेन पादावशेषेण लोहपात्रे पचेद्भिपक। इसे अग्नि बलानुसार, प्रातःकाल अथवा तुलाथै तीक्ष्णलोहस्य घृतस्य कुडवद्वयम् ॥ भोजनके समय सेवन करनेसे अर्श, संग्रहणी, यूषणं त्रिफला वह्नि सैन्धवं विडमौद्भिदम् । पाण्डु, अचि, कृमि, गुल्म, पथरी, प्रमेह, शूल, सौवञ्चलं विडङ्गानि पलिकांशानि कल्पयेत् ॥ और बलि पलितका नाश होकर शुक्र वृद्धि कुडवं वृद्धदारस्थ तालमूल्यास्तथैव च । होती है । वरणस्य पलान्यष्टौ चूर्ण कृत्वा विनिक्षिपेत् ॥ मात्रा, तोला । अनपान दध ) सिद्धशीते प्रदातव्यं मधुनः कुडवदयम् । प्रातर्भोजनकाले वा ततः खादेद्यथा बलम ॥ (१७५७) चित्रकादिलोहम् अर्शीसि ग्रहणीरोगं पाण्डुरोगमरोचकम् । (भै. र. । प्ली.; धन्वं. । उदर रो.) कृमिगुल्माश्मरीमेहशूलाश्चाशु व्यपोहति ॥ चित्रकं नागरं वासा गुडूची शालपर्णिका। करोति शुक्रोपचयं वलीपलितनाशनम् । तालपुष्पमपामार्गो माणकं कार्षिकत्रयम् ॥ रसायनमिदं श्रेष्ठं सर्वरोगहरं परम् ॥ लौहमभ्रकणातानं क्षारको लवणानि च । चीता, हर्र, बहेडा, आमला, नागरमोथा, पृथकर्षीशमेतेषां चूर्णमेकत्र चिक्कणम् ।। पीपलामूल, चव, गिलोय, गजपीपल, चिरचिटा, चतुष्पस्थे गवां मूत्रे पचेन्मन्देन वह्निना। सफेद फूलको सहदेवी और तुलसी ४-४ पल सिद्धशीतं समुद्धत्य माक्षिकं द्विपलं क्षिपेत् ॥ (२०-२० तोले) लेकर अधकुट करके १ द्रोण चित्रकादिरयं लौहो गुल्मप्लीहोदरामयम् । (-३२ सेर) पानीमें पकाइये; और पकते समय उसमें यकृतं ग्रहणी हन्ति शोथं मन्दानलं ज्वरम् ॥ २ हज़ार भिलावे डाल दीजिए । चतुर्थांश जल शेप कामलां पाण्डुरोगश्च गुदभ्रंशं प्रवाहिकाम् ॥ रहने पर छानकर उसमें ५० पल ( ३ सेर १० । चीता, सोंठ, बासा, गिलोय, शालपर्णी, तालतोले ) शुद्ध तीक्ष्ण लोहचूर्ण मिलाकर पुनः पकाइये वृक्षके फूल, अपामार्ग (चिरचिटा) और मानकन्दका और गाढ़ा होनेपर उसमें आधा सेर धी और चूर्ण ३-३ फर्ष ( ३।। तोले ), लोह भस्म, सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, आमला, चीता, अभ्रक भस्म, पोपलका चूर्ण, तात्र भस्म, जवाखार, सेंधा नमक, खारी नमक, उद्भिज नमक, सौंचल | सेंधा नमक, खारी नमक, काला नमक, सांभर नमक For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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