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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [१६० ] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [चकारादि इसे प्रातःकाल सेवन करनेसे पित्तोन्माद, जब गाढ़ा हो जाय तो उतारकर ठण्डा करके उस शिरोभ्रमण (चक्कर आना), मूर्छा, हाथपैर और , में निसोत, दन्तीमूल, बायबिड़ङ्ग, हर्र, आमला, शरीरकी दाह, रक्तपित्त, वमन, (पित्तज) खांसी; | सोंठ, बहेड़ा ओर पीपलका चूर्ण आधा आधा पल क्षय और पाण्डुरोग नष्ट होता है । और खांड तथा शहद ४-४ पल मिलाकर घृतसे श्रीचन्द्र कथित यह चन्द्रावलेह चन्द्रके | चिकने किए हुवे पात्रमें भरकर सुरक्षित रखिए। समान शान्तिदायक है। ___इसके सेवनसे बवासीर, कुष्ट, शोथ, पाण्डु, (मात्रा १ तोलेसे २॥ तोले तक) तिल्ली, हृच्छूल, गुदशूल और परिणामशूल नष्ट (१७५२) चव्यादिलौहम् । होता तथा बल, वर्ण, अग्नि और वीर्यकी वृद्धि (र. र; धन्वं.; र. का. धे. । अर्श.) | होती है। इसके सेवन कालमें करीर, काजी और मकोय चव्याः पलाष्टकं देयं खदिरं चार्टमेव च। का परहेज करना चाहिए। चित्रकस्य पलं पञ्च तालमूली च तत्समा! चातुर्भद्रावलेहिका त्रिफला प्रस्थसंयुक्ता जलद्रोणे विपाचयेत् । (वं. से.; भा. प्र.; भै. र.; च. द.; ग. नि.; । ज्वर.; अष्टभागावशेषेण कषायमवतारयेत् ॥ ___ वृ. यो. त. । त. ५९) आज्यात्पलाष्टकं देयं रुक्मलौहस्य पोडश । (७७९ संख्यक प्रयोग देखिए ।) पचेत्ताम्रमये पात्रे सुशीते चावतारयेत् ॥ । (१७५३) चातुभद्रिकावलेहः त्रिवृदन्ती विडंगानि पथ्या चामलकानि च।। ( भा. प्र. । ख. २ ज्वरा.) शुण्ठी विभीतकी कृष्णा एषां देयं पलार्द्धकम् ॥ माती पाय पलादकम्।। पिप्पलीत्रिफला चापि समभागावरी लिहन् । शर्करामधुचत्वारि स्निग्धे भाण्डे निधापयेत् । | मधुना सर्पिषा चापिकासी श्वासी सुखी भवेत्॥ दुनोमकुष्ठश्वयथुपाण्डुप्लीहोदरापहम् ॥ पीपल, हर्र, बहेड़ा और आमलेके समान हृच्छूले गुदशूले च परिणामकृते हितम् । | भाग चूर्णको (३से६ माशेकी मात्रानुसार) शहद वलवर्णकर वृष्यमपिसन्दीपनं परम् ॥ और धीमें मिलाकर चाटनेसे ज्वर, खांसी और करीरकाञ्जिकं चैव काकमाचीं विवर्जयेत् ॥ . श्वास नष्ट होता है। चव ८ पल (४० तोले); खैर सार ४ पल; चित्रकगुडः (वं. से.; व. मा. अजीर्ण;ग.नि.लेहा.) चीता ५ पल, ताड़की जड़ ५ पल, और त्रिफला चित्रक हरीतकी सं. १७५५ देखिए । उसमें १ प्रस्थ (१६ पल) लेकर, कूटकर १ द्रोण और इसमें केवल इतना भेद है कि इसमें आमलेका (१६ प्रस्थ) जलमें पकाइये । जब आठवां भाग रस नहीं पडता तथा यवक्षार ४ तो. और अन्य पानी शेष रह जाय तो उतारकर छान लीजिए। प्रक्षेप द्रव्य १-१ पल पड़ते हैं। अब इसमें ८ पल घी और १६ पल शुद्ध रुक्म ग नि. में यही प्रयोग चित्राकावलेहके नामसे लोहका चूर्ण मिलाकर तांबेके पात्रमें पकाइये, लिखा है। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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