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अवलेहप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[ १५९]
इसे शहद और धीमें मिलाकर चाटनेसे भय- सारिवा, कंकोल, खस केसर और शतावरका चूर्ण ङ्कर अपस्मार (मिरगी), उन्माद (पागलपन), | तथा गिलोयका सत मिला दीजिए। कामला, पाण्डु, हलीमक, राजयक्ष्मा, रक्तपित्त, इस अवलेहके सेवनसे हृद्रोग, भ्रम, मूर्छा, पित्तातिसार, शोष, रक्तातिसार, शिरोरोग, सदा बना वमन और भयङ्कर दाहका अवश्य नाश होता है। रहने वाला ज्वर, तमक स्वास, भ्रम, छर्दि, दाह, (मात्रा-१-१॥ तोला ।) मदात्यय, (मद्यविकार), पथरी, प्रमेह, खांसी, श्वास (१७५१) चन्द्रावलेहः (र.र.स.।उ.खं.अ.२१) और पीनस रोग नष्ट होता है।
एलायाश्च तुला ग्राह्या जलद्रोणे विपाचयेत् । यह बन्ध्या स्त्री, बालक और विशेषतः वृद्धों । अष्टभागाऽवशिष्टं तु शर्करार्धतुलां क्षिपेत् ॥ के लिए हितकर है । इसकी उत्तम (पूर्ण) मात्रा शतावर्या विदार्याश्च गोक्षीरं चाढकं पृथक् । १ कर्ष (१। तोला) और मध्यम मात्रा पौन कर्ष है। लेहवत्साधिते तस्त्रिन्द्राक्षा मधुकपिप्पली ॥ ___ यह कृष्णात्रेय कल्पित चन्दनाद्यवलेह स्त्रियों त्रिजातकं च खर्जरं चन्दनद्वयसारिवा । और बच्चोंको दृधके साथ खिलानेसे बलवृद्धि मुस्तापमकहीवेरधात्रीचोत्पलचौरकम् ।। होती है।
एतेषां पलमादाय क्षिपेत्क्षीर्याश्चतुष्पलम् । (१७५०) चन्दनावलेहः (ग. नि. । परि.लेहा.) | क्षौद्रमस्थेन संयुक्तं लेहयेत्मातरुत्थितः॥ मातुलुङ्गरसप्रस्थं प्रस्थाधै दाडिमाद्रसः। | पित्तोन्मादविकारेषु शिरोभ्रमणमूर्छिते । तत्तुल्यं नारिकेलाम्बु शर्करा कुडवद्वयम् ॥ हस्तपादाङ्गदाहे च पित्तरक्तोजरातौ।। पाकं कृत्वा यथा न्यायं सिद्धशीते समावपेत् । छर्दिकासक्षये पाण्डौ चन्द्रवञ्चन्द्रभाषितम् ॥ चन्दनं च तुगाक्षीरी धान्यकं सारिवां तथा ॥ १०० पल (५०० तोले) इलायचीको १ कोलकमुशीरं च कुङ्कमं शतपुत्रिकाम् । | द्रोण (१६ सेर) पानीमें पकाइये और आठवां सत्वं गुडूच्याश्च तथा कर्षमान पृथक पृथक् ॥ भाग शेष रहने पर छानकर उसमें ५० पल खांड एषोऽवलेहो हृद्रोग भ्रमं मूच्छी वमिं तथा। और १-१ आढक (४-४ सेर) शतावरीका रस, दाहश्च सुमहाघोरं शमयेन्नात्र संशयः॥ विदारीकन्दका रस और गायका दूध मिलाकर ___बिजौरे नीबूका रस १ प्रस्थ (८० तोले); पुनः पकाकर अवलेहके समान गाढ़ा कर लीजिए। अनारका रस और नारियलका पानी (हरे नारि- और फिर उसमें भुनका, मुलैठी, पीपल, दालचीनी, यलको तोड़नेसे जो पानी निकलता है वह) आधा तेजपात, इलायची, खजूर, लाल चन्दन, सफेद आधा प्रस्थ तथा मिश्री आधा प्रस्थ लेकर एकत्र | | चन्दन सारिवा, मोथा, पद्माक, नेत्रबाला, आमला, मिलाकर पकाइये । जब अवलेहके समान गाढा नीलोफर और चोरकका १-१ पल चूर्ण तथा हो जाय तो ठण्डा करके उसमें १-१ कर्ष बंसलोचनका चूर्ण ४ पल (२० तोले) और १ सेर (१।-११ तोला) सफेदचन्दन, बंसलोचन, धनिया, | शहद मिला लीजिए।
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