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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[चकारादि
(१६६८) चन्दनादिपानम्
(१६७१) चम्पकमूलकषायः (वै.म.र.।पट.६) (बृ. नि. र.; व. द । छर्दब०) चम्पकशिफाकषायःपीतो निरुणद्धि मूत्रमवशगतम् चन्दनं च मृणालं च वालक नागरं वृषम्। नीचतलपतितमम्भश्चतुरजनोत्पादितो यथा सेतुः। सतन्दुलोदकक्षौदैःपीतः कल्को वमिञ्जयेत् ॥ चपक (चम्पाफूल)की जड़का क्वाथ पीनेसे
सफेद चन्दन, कमलनाल, नेत्र बाला, सॉट मूत्रातिसार (बहुमूत्र) रोग अवश्य नष्ट होता है और बासेको पानीमें पीसकर चावलोंके पानीमें (१६७२) चधिकापल्ल्वयोगः (वै.म.पट.६) धोलकर शहदसे मीठा करके पीनेसे वमन रुक पल्लवं चविकायाश्च श्वेतमूलाहसम्भवम् । जाती है।
पल्लवं क्षीरिवृक्षस्य पिट्वा तैलेन पाययेत् ॥ (१६६९)चन्दनादिप्रयोगः (च.स.चि.अ.२५) चवके पत्ते या श्वेत पुनर्नाके पत्ते अथवा
चन्दनं तगरं कुष्ठं हरिद्रे द्वे त्वगेव च । क्षीरी वृक्षों ( पीपल, पिलखन, गूलर, वेत, बड़) मन शिला तमालश्च रसः कैशर एव च ।। के पत्तोंको तेलमें पीसकर पीनेसे अतिसार नष्ट शार्दूलस्य नखश्चैव सुपिठं तण्डुलाम्बुना।। होता है। हन्ति सर्व विषाण्येव वजीवनमिवासुरान्॥ (१६७३) चव्यादिकाथः (वृ.नि.र.।उदर.)
लालचन्दन, तगर, कूठ, ह दी, दारुह दी, दार- चव्यचित्रकविश्वानां साधितो देवदारुणा । चीनी, मनसिल, तमालपत्र, केसरका रस, और शेरका काथस्त्रिवर्णयुतो गोमूत्रेणोदरं जयेत् ॥ नाखून; बराबरे बराबर लेकर चावलोंके पानीमें पीसकर चव, चीता, सोंठ और देवदारुको गोमूत्रमें प्रयोग करनेसे सब प्रकार के विष नष्ट होते हैं। पकाकर छानकर उसमें निसोतका चूर्ण मिलाकर (१६७०) चन्द्र सरकाथः ।
पीनेसे जलोदरादि उदररोग नष्ट होते हैं। (वृ. नि. र.; भा. प्र.; वै. र. । हिक्की.) (१६७४) चव्यादिकाथः (वं.से.;भा.प्र.।अति.) चन्द्रसूरस्थ वीजानि क्षिपेदष्टगुणे जले। चव्यं सातिविषं कुष्ठं बालविल्वं सनागरम् । यदा मुनि गृहीयात् ततो वाससि गालयेत् ॥ वत्सकत्वकफलं पथ्या छर्दिश्लेष्मातिसारनुत् ।। हिकातिवेगकललस्तज्जलं पलमात्रया।
चव्य, अनीस, कृट, कच्ची बेलगिरी, सोंठ, पिबेत्पुनः पुनश्चापि हिकाशीघ्रं विनश्यति ॥ कुडेकी छाल इन्द्रजौ और हरका क्वाथ पीनेसे वमन,
हालोंके बीजोंको आठ गुने जलमें पका । और कफातिसार नष्ट होता है । लीजिए और जब वह नरम हो जाय तो काथको (१६७५) चन्यादिकाथ: (च.सं.चि.अ.५) छानकर शीशीमें भरकर रख लीजिए।
चव्यानिमन्थो त्रिफलासपाठा इते १ पन्ट (५ तोले) की मात्रानुसार पुन: : मधुसम्पयुक्ता कफमेहं नाशयति ॥ पुनः पिलानेसे अति प्रबल हिचकी भी शान्त हो । चव, अग्निमन्थ ( अरणी ), त्रिफला ( हरी, जाती है।
बहेड़ा, आमला ) और पाठा ( जलजमनी ) के
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