SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir कषायप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [ १३९] काथमें शहद मिलाकर पीनेसे कफज प्रमेह नष्ट (१६७९) चातुर्भद्रम् ( र.र.;भा.प्र.।ज्वरा ) होता है। किराततिक्तकं मुस्तं गुडूची विश्वभेषजम् । (१६७६) चाङ्गेरीप्रयोगः ( वं. से. । उन्मा.) चातुर्भद्रमिदं ख्यातं वातश्लेष्मज्वरापहम् ।। चाङ्गेरीरसकाञ्जिकगुडसमभागाःसुमथिताःक्रमशः चिरायता, मोथा, गिलोय और सोंठके योगका उन्मादरोगशमनाः पीता दिवसत्रयेणैव ॥ नाम ' चातुर्भदम् ' है। यह वातकफज ज्वरको ___ चाङ्गेरी ( चूके )का रस, काञ्जी और गुड़ नष्ट करता है। बराबर बराबर लेकर सबको भली भांति मथकर (१६८०) चिश्चापत्रादिकल्कः (रा.मा.क्षुद्र.) तीन दिन पिलानेसे ही उन्माद (पागलपन) नष्ट चिश्चादलेन सहितां रजनी प्रपिष्य हो जाता है । ये शीतलेन सलिलेन सकृत्पिबन्ति । (१६७७) चातुर्भद्रकम् ( भै. र. । परि. ) तेषां भवन्ति नहि शीतलिकाः शरीरे नागरातिविषामुस्तं त्रयमेतद्विमिश्रितम् ।। कार्यत्विदं प्रथममेव तदुद्भवेऽपि ॥ गुडूचीसंयुतं तच्च चातुर्भद्रकमुच्यते ॥ इमलीके पत्ते और हल्दीको ठण्डे पानीमें . पीसकर बार बार पीनेसे शीतला नही निकलती । सोंठ, अतीस, मोथा और गिलोय; इन चारों . शीतला निकल आने पर भी प्रारम्भमें यही ओषधियोंके योगका नाम चातुर्भद्रक कषाय है। योग पिलाना चाहिए। ( यह कषाय कफाधिक कफपित्त वर, आम, (१६८१) चित्रकमूलादियोगः (रा.मा.।अर्श.) संग्रहणी नाशक और दीपन पाचन है।) यश्चित्रकोत्थमथवा मुशलीसमुत्थ(१६७८) चातुर्भद्रकपञ्चमूलादिकाथः । मादाय कृष्णचिरविल्वसमुद्भवं वा । (वं. मा.; च. द.; ग. नि. । वरा.) गोमूत्रयुक्तमभिपिष्य पिबत्यभीक्ष्णम् पञ्चमूली किरातादिगणो योज्यस्त्रिदोषजे।। मूलं न तस्य गुदकीलकृताऽस्ति भीतिः॥ पित्तोत्कटे च मधुना, कणया वा कफोत्कटे ॥ चीते, मूसली या कृष्णकरञ्जवेकी जड़को पित्तप्रधान सन्निपातज्वरमें लघु पञ्चमूल । गोमूत्रके साथ पीसकर सेवन करनेसे बवासीरके (शालपर्णी, पृष्टपर्णी, कटेली, कटेला, गोखरु) और मस्से नष्ट हो जाते हैं । किरातादिगण ( चिरायता, सोंठ, मोथा, गिलोय ) (१६८२) चित्रकादिक्वाथः के क्वाथमें शहद डालकर और कफप्रधान सन्निपात ( वा. भ.; वं. से.; वृ. नि. र.; यो. र.; ग. नि.; ध्यरमें वृह पञ्चमूल ( बेलकी छाल, सोनापाठा . मा. । शूला.; वृ. यो. त. । त. ९४ ) . ( अरलु )की छाल, खम्भारी ( कुम्हार ) पाढल चित्रकग्रन्थिकैरण्डशुण्ठीधान्यजलैः शतम् । और अरनी) और किरातादिगणके काथमें पीपलका सहिङ्गसैन्धवविडमामशूलहरं परम्॥ चूर्ण मिलाकर पिलाना चाहिए । . चीता, पोपलामूल, अरण्डकी जड़, सौंठ, For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy