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[ १३६ ]
भारत-भैषज्य रत्नाकरः।
[चकारादि
(१६५३) चन्दनादिक्काथः (पेया) । वाजिगन्धा वचा कृष्णा काकोली जीवकर्षभौ। (वं. से.। रक्तपि० )
काथ एषां पिबेत्मातर्मस्तिष्कहासशान्तये॥ चन्दनोशीरलोध्राणां रसे तस्मिन् सनागरे।
____ पातःकाल सफेद चन्दन, लाल चन्दन, मूर्वा, किराततिक्तकोशीर मुद्गानां तद्वदेव तु ।। ।
हल्दी, लाख, __ रक्तपित्त रोगमें लाल चन्दन, खस और |
बंसलोचन, गेरु, जीवन्ती, शतावरी, असगन्ध, लोधके क्वाथ और सोंठके कल्क अथवा चिरायता,
बच, पीपल, काकोली, जीवक और ऋषभकका खस और मंगके काथसे सिद्ध पेया देनी चाहिए।
क्वाथ पीनेसे मस्तिष्ककी निर्बलता नष्ट होती है ।
। (१६५७) चन्दनादिकाथः (वं. से. । ज्वरा.) (१६५४) चन्दनादिक्काथः (वा.भ.।चि.अ.२) प्रसादश्चन्दनाम्भोजसेव्यं मृदभृष्टलोष्टजः।
शर्करामधुरो हन्ति कपायापैत्तिकं ज्वरम् । सुशीतःससिताक्षौद्रः शोणितातिप्रवृत्तिजित् ॥
। चन्दनोशीरश्रीपर्णीपरूपकमधृकजः॥ लाल चन्दन और कमलके शीत कषायमें
लाल चन्दन, खस, खम्भारीके फल, फालसेकी मिट्टीका ढेला ( पिण्ड ) खूब तपाकर बुझाकर
छाल और महुवेकी छाल ( या फल )के काथको ठण्डा होनेपर उसमें मिश्री और शहद मिलाकर
खांडसे मीठा करके पीनेसे पित्तज ञ्चर नष्ट होता है। पीनेसे रक्तपित्त नष्ट होता है।
(१६५८) चन्दनादिकाथः । (१६५५) चन्दनादिकाथः (वा.भ.।चि.अ. २) ।
( आ. वे. वि. । अ. ६८ ) चन्दनोशीरजलदो लाजाभुद्गकणायवैः।
चन्दने नलदं द्राक्षा गुडूची मधुकं स्फटी बलाजले पर्युषितैःकषायो रक्तपित्तहा ॥
धात्री च काथ एतेषां ओजो मेहोपशान्तिकृत लाल चन्दन, खस, नागरमोथा, धानकी खील,
.. सफेद चन्दन, लाल चन्दन, नल, मुनक्का, मूंग, पीपल और इन्द्रजौ समान भाग मिश्रित २
गिलोय, मुलैठी, फटकीकी खील और आमलेका
क्वाथ पीनेसे ओजोमेह नष्ट होता है । तोले लेकर अधकुट करके रात्रिके समय खरैटीके काथमें भिगो दीजिए और प्रातःकाल छानकर
(१६५९) चन्दनादिक्वाथः पिला दीजिए, इससे रक्तपित्त नष्ट होता है। ( यो. र.; भा. प्र.; वृ. नि. र. । मसू० ) (१६५६) चन्दनादिक्वाथः
चन्दनं वासको मुस्तं गुडूची द्राक्षया सह । - ( आ. वे. वि. । अ. ७७ )
एषां शीतकपायस्तु शीतलाज्वरनाशनः ।। चन्दनं द्वितयं मूर्वा श्यामाद्वन्द्व निशाद्वयम् ।। ___लाल चन्दन, बासा, मोथा, गिलोय और लाक्षा वांशी गैरिकश्च जीवन्ती मधुकं वरी॥। मुनक्काका शीतकषाय शीतलाञ्चरको शान्त करता है।
१ 'गव्य शीतकषायस्तु' इति पाठभेदः ।
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