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कषायप्रकरणम्
द्वितीयो भागः।
[१३५]
ब्राह्मी, भारंगी, गजपीपल, सोंठ, हर्र, अडूसा, (१६५०) चन्दनादिकल्कः (वृ.नि.र.। मसू.) मूर्वा, स्याह निसोत, पीपल, पीपलामूल, मोथा, श्वेतचन्दनकल्केन हिलमोचोद्भवं द्रवम् । अजवायन, अजमोद, सौंफ, अगर, चन्दन (लाल), पिबेन्मसूरिकारम्भे नैवं वा केवलं रसम् ।। कुड़ेकी छाल, चव, सफेद सारिवा, वच, काय
___ मसूरिकाके आरम्भमें सफेद चन्दनको हुलफल, शालपर्णी, पृश्निपर्णी, कटली, कटैला, गोखरु,
हुलके रसमें पीसकर पीना, अथवा केवल हुलहुलका बेलकी छाल, सोनापाठा (अरल), खम्भारी (कुम्हार)
रस पीना हितकारक है। पाढल, और अरणी । इन चौसठ ओषधियोंके योग
(च.सं.।चि.अ.२५) का नाम 'चतुःषष्ठिकक्काथ वा अंग्यादि काथ है।। (१६५१) चन्दनादिकल्कः
यह आठ प्रकारके ज्वर, और सर्वांगगत चन्दनं पमकोशीरं पाटलि सिन्धुवारिका । वायुका नाश करता तथा अग्नि प्रदीप्त करता है। क्षीरशुक्ला नतं कुष्ठं शिरीषोदीच्यशारिवाः। (१६४७) चतुरम्लम् ( भै. र.। परिशिष्ट.) शेलुस्वरसपिष्टोऽयं लूतानां सार्वकार्मिकः॥ कोलदाडिमवृक्षाम्लैरम्लवेतससंयुतैः॥
___ लालचन्दन, पद्माख, खस, पाढल, संभालु, चतुरम्लन्तु पञ्चाम्लं मातुलुङ्गसमन्विन्तम्॥
विदारीकन्द, तगर, कूठ, सिरसकी छाल, नेत्रबाला खट्टा, बेर, अनारदाना, तितड़ीक, और अम्ल | और सारिवाको लिहसौड़े (रीठे )के रसमें पीसकर बेतके योगका नाम चतुराम्ल तथा बिजौरे नीबू पीने या लेप लगानेसे मकड़ीका विष नष्ट होता है। सहित उपरोक्त चारों (कुल पांचो) वस्तुओंका नाम
(१६५२) चन्दनादिकल्कः (वं. से. । स्त्री. ) पञ्चाम्ल है। (१६४८) चतुर्दशांङ्गः
चन्दनोशीरपतङ्गमधुकं नीलमुत्पलम् । ( र. र.; भा. प्र.; धन्व.; भै. र.; वृं. मा. ।
त्रपुसैर्वारुबीजानि धातकीकदलीफलम् ।।
कोललाक्षावटारोहपद्मकं पद्मकेशरम् ।। ज्वर.; वृ. यो. त. । त. ५९ )
एतान्कल्कान्मधुयुतान्पाययेत्तण्डुलाम्बुना॥ ६४८ संख्यक किरातादि काथ देखिए ।
व्यहात्प्रशमयेदेतयोषितां पैत्तिकं रजः॥ (१६४९) चन्दनादिकल्कः
सफेद चन्दन, खस, पतङ्ग, मुलैठी, नीलोफर, ( यो. र. । छर्दि.; वृ. यो. त. ।) खीरे और ककडीके बीज, धायके फूल, केलेकी चन्दनश्च मृणालश्च वालकं नागरं वृषम् । फली, बेर, लाख, बड़के अङ्कर, पद्माक और सतण्डुलोदकक्षौद्रःपीतःकल्को वमीर्जयेत् ॥१॥ कमलकेसरको पानी में ( पिट्टीकी तरह ) पीसकर __ सफेद चन्दन, कमल नाल, नेत्रवाला, सोंठ । शहदमें मिलाकर तण्डुलोदक ( चावलोंके पानी) और बांसा समान भाग पीसकर चावलोंके पानी के साथ पिलानेसे स्त्रियोंका पित्तज रजोस्राव (प्रदर) मिलाकर शहद डालकर पीनेसे छर्दि नष्ट होती है। तीन दिनमें ही नष्ट हो जाता है।
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