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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir vvvvvvvvvvvvvvvhnavr vvvvvvvvvvvvvvvviry vvvvvvvvvvvvv [१३२ ] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [घकारादि घीमें शीतल पानी मिलाकर उसे हाथसे खूब | अथ घकारादिधूम्रप्रकरणम् मथकर पानी निकाल दीजिए और फिर नवीन जल डालकर यही क्रिया कीजिए । इस प्रकार | । (१६३९) घृताधूिमः १००, ५०० या हज़ार बार धोनेसे घृत अत्यंन्त । शीतल हो जाता है और उसकी मालिशसे विसर्प __(भा. प्र.। खं. २ नासा.; यो. र. । रासा.) तथा शरीरकी दाह आदि नष्ट होती है। घृतगुग्गुलुमिश्रस्य सिक्थकस्य प्रयत्नतः । (१६३७) घृतपानम् ( यो. चि. म. । अ.७) धूमं क्षवथुरोगघ्नं भ्रंशथुघ्नश्च निर्दिशेत् ।। शुद्धगव्यं घृतं तप्तं मरिचैर्वा कणान्वितम् । घी, गूगल और मोम समान भाग मिलाकर रसायनं सदा पेयं घृतपानं प्रशस्यते ॥१ धूम्रपान करनेसे क्षवथु (छींके आना) और भ्रथु रूक्षक्षतविषार्तानां वातपित्तविकारिणाम् । रोग नष्ट होता है। हीनमेधास्मृतीनाश्च घृतपानं प्रशस्यते॥ ॥ इति घकारादिधूम्रप्रकरणम् ॥ रूक्षता ( खुश्की ), घाव, विष ओर वातपित्त विकारकी शान्ति तथा मेधा और स्मृति अथ घकारादिरसप्रकरणम् ( स्मरण शक्ति )की हीनताको दूर करनेके लिए शुद्ध गोघृतको गर्म करके उसमें स्याहमिर्च अथवा (१६४०) घनगर्भरसः (रसे. मं.। अ. ३) पीपलका चूर्ण मिलाकर पीना हितकर है । इस मनःशिलातालकमम्बरं घनं, प्रकार घृतपान करनेसे रसायनके गुण भी प्राप्त पीताम्बरं तीक्ष्णरजश्च कुञ्जरम् । होते हैं। तापीरुहं कान्तरजो रसेन तत् घृतमूर्छाविधिः कुमारिवन्ध्यासुरदालिजेन ॥१५२॥ अकारादि घृतप्रकरणके आरम्भमें देखिये। घृष्टं मूषास्थं करिषानलेन, (१६३८) घृतसैन्धवयोगः (रा.मा.।विष.२८) पुटेन दग्धं वरभस्ममेति । उष्णं घृतं सैन्धवचूर्णयुक्तं तद्भस्ममूतश्च गुदामयेषु निपीतमाशु प्रशमं करोति । भगन्दरे चापि हितं वदन्ति ॥१५३॥ निश्वासकम्पश्रमवारिताप शुद्ध मनसिल, शुद्ध हरताल, अम्बर अभ्रक रुजां जयेद् दृश्चिकदंशजाताम् ॥ गर्म घृतमें सेंधानमकका चूर्ण मिलाकर पीनेसे (भस्म ) हल्दी तीक्ष्णलोह (भस्म ), सीसा भस्म श्वास, कम्पन ( कपकपी ), पसीना, दाह, पीड़ा सोनामक्खी ( भस्म ) और कान्तलोह ( भस्म ) और बिच्छुके काटेको तुरन्त आराम होता है । समान भाग लेकर सबको धीकुमार, वांझ इति घकारादिघृतप्रकरणम् । ककोड़ा और देवदाली (बिंडाल) के रसमें घोटकर | टिकिया बनाकर सुखा लीजिए और सम्पुटमें For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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