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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra [ १३० ] www.kobatirth.org भारत - भैषज्य -- रत्नाकरः । घ अथ घकारादि कषाय - प्रकरणम् विहितं मधुना युतं पिवेत् (१६२६) घनचन्दनादिकाथः (भै.र. । ज्वरा.) घनचन्दनपर्पटकं कटुकं तु मृणालपटोलदलं सजलम् । मृतशीतसितायुतपित्तहरम् ज्वरछर्दितृषारुचिदाहहरम् ॥ नागरमोथा, लाल चन्दन, पितपापड़ा, कुटकी, कमलनाल, पटोलपत्र और नेत्र बालेके काढ़े को ठण्डा करके मिश्री मिलाकर पीनेसे पित्तज्वर, छर्दि, तृषा, अरुचि और दाहका नाश होता है । (१६२७) घनसप्तककषायः (यो.स. । समु. ४) घनो गुडूची कुटजः किरातो विश्वौषधं वालकशुक्लकन्दजे । एतैः कषायो विहितोतिसारं सशोणितं सज्वरमाशु हन्यात् ॥ नागरमोथा, गिलोय, कुड़ेकी छाल, चिरायता, सूंठ, नेत्रवाला और अतीसका काथ पीने से रक्तातिसार और ज्वरातिसार अत्यन्त शीघ्र नष्ट होता है । (१६२८) घनादिकाथः (वृ.नि.र. । ज्वर. ) निम्ब महौषधामृता कटुवार्ता कपटोलवत्सजैः । किल शीतज्वरशान्तये भृतम् ॥ Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ घकारादि नागरमोथा, नीमकी छाल, सोंठ, गिलोय, सफेद कटैली, पटोलपत्र और इन्द्रजौका काथ शहद डालकर पीने से शीतज्वर नष्ट होता है । (१६२९) घृतदध्यादियोगः (यो.. त.७९) घृतदधिमधुरपयोदधिमण्डेरुषसि कृतः करिकर्णपलाशः । स्थगयति हि स्थिरतां स्थविराणाम्, विदधाति पुर्ववत्ताम् ॥ १३ ॥ हस्तिकर्ण पलाश ( ढाकका भेद ) की छालको पीसकर रात्रि के समय घी, दही, मीठादूध और दहीके मण्डमेंसे किसीमें मिलाकर रख दीजिए । इसे प्रातः काल पीने से वृद्धावस्था रुकती और वृद्धि होती है । (१६३०) घोषकस्वरसप्रयोगः (वं. से. । स्त्री.) घोषकस्वरसः पीतो मस्तुना च समन्वितः योनिकन्दं निहन्त्याशु तन्नाडी चैव धूपतः ॥ ३८८ For Private And Personal कडवी तोरई के स्वरसमें मस्तु ( द्विगुण जल मिश्रित तक) मिलाकर पीनेसे और कड़वी तोरीके डलकी धूनी देनेसे योनिकन्द रोग नष्ट होता है । ।। इति घकारादिकषायप्रकरणम् ॥
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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