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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [१२८] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [गकारादि (१६१७) गुञ्जादिमूलप्रयोगः (रा.मा.।मुखरो०) (१६२१) गोधूमाद्या पूपालिका (ग.नि.।वाजी.) गुञ्जावराहकारन्यतरस्थाःसमुद्रत मूलम् । आसन्नक्षीरिणो ज्ञात्वागोधमान शालिषष्टिकान्। दन्तैश्चर्वितमाति दशनघुणोत्थां विनाशयति ॥ निष्पीड्य क्षीरं मधुकमृणालकपिकच्छुभिः॥ चौंटली (गुञ्जा) अथवा बराहक्रान्ताकी जड़ विदार्याश्चैव चूर्णेन शर्करामधुसंयुताम् । को चबानेसे दांतका कीड़ा नष्ट होता है। घृते पूपलिकां पक्त्वा भक्षयित्वा पयःपिबेत् ।। (१६१८) गुञ्जादिवर्तिः (वृ. नि. र. । संग्र.) | स्त्रीणां शतमसौ गत्वाकुलिङ्ग इव हृष्यति । गुञ्जाकूष्माण्डबीजश्च मूरणेन च वर्तिकाम् । जब गेहं, शाली और षष्टी (सट्टी) धान्यों में लेपयेच्छायया शुष्कां गुदगाह्यर्शसाञ्जयेत् ॥ चौंटली (गुञ्जा) और पेटेके बीज तथा जमी दूध पड़ जाय तो उनको पीसकर दूध निकालकर कन्द समान भाग लेकर (पानीमें पीसकर) वर्ति उसमें मुलैठी, कमलनाल कौंच, और विदारीकन्दका ( बत्ती) बनाकर छायामें सुखाकर गुदामें रखनेसे चूर्ण तथा खांड और शहद मिलाकर पूरियां बनवा अर्श (बवासीर ) नष्ट होती है। लीजिए। (१६१९) गुल्महरी वतिः (सु.सं.।उत्त.अ.४२) इनको खाकर ऊपरसे दूधपीनेसे. मनुष्य में वातव!निरोधे तु सामुद्रार्दकसर्षपैः। सैकड़ों स्त्रियोंसे रमण करनेकी शक्ति आ जाती है। कृत्वा पायौ विधातव्या वर्तिका मरिचोत्तरा॥ (१६२२) गोमक्षिकाहरप्रयोगः ___गुल्म रोगमें अपान वायु और मलावरोध होने पर समुद्र नमक, अद्रक, सरसों और स्याह मिर्चके (यो. र. । कर्ण रो० ) चूर्णकी वर्तियां बनाकर गुदमार्गमें लगानी चाहिएं। दन्तेन चर्वयेन्मूलं नन्द्यावर्त्तपलाशयोः । (प्र. वि. सब चीजों के समान भाग चूर्णको तल्लालापूरिते कर्णे ध्रुवं गोमक्षिकां जयेत् ॥ गुडमें मिलाकर वर्तियां बनानी चाहिए और एक तगर और पलाश (ढाक )की जड़को चवाकर वर्ति (बत्ती) के निकल जाने पर दूसरी लगा देनी कानमें लाला (थूक ) डालनेसे गोमक्षिका चाहिए ।) ( डांस-मच्छर ) अवश्य निकल जाता है । (१६२०) गोधूमादि पोलिका (यो. र. । शोथा., ग. नि. । शो.) (१६२३)गोमयपिण्डादिस्वेदः (व.से.।अर्श.) गोधूमकणिकायुक्ता निर्गुण्डीपत्रचूर्णिका स्वेदो गोमयपिण्डेन सक्तुनामलकेन च। पोलिका तिलतैलेन युक्ता शोथविनाशिनी। शतपुष्पेण वा कार्यो गुदजानां निवृत्तये ॥ गेहूंके आटे और संभालके पत्तोंके चूर्णकी गोबरकी पिण्डी, सत्तू, आमलेकी पिट्ठी, या पोलिका (पतली रोटी) बनाकर तिल तैलके साथ सोयेकी पोटलीसे स्वेदन करने ( सेकने )से बवाप्रयुक्त करनेसे शोथ रोग नष्ट होता है। सीरके मस्से नष्ट होते हैं। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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