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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [१०६] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [गकारादि wwww بیمه ای به عمه ی घोटकर ३ भावना त्रिकुटे ( सोंठ, मिर्च, पीपल) | करनेसे गलत्कुष्ठ नष्ट होता है । के काथकी दीजिए। ___ पथ्य-लवण रहित भात, गेहूं , दूध, मिश्री आदि । इसे ४ रत्तीकी मात्रानुसार सेवन करानेसे अपथ्य-बैंगन, उर्द, स्त्री प्रसंगादि । गर्भिणीका शूल, कब्ज, और ज्वर तथा अजीर्ण | (१५६१) गलत्कुष्ठारिः रसः (बदहज़मी) रोग नष्ट होता है । ___ यदि इसमें तुत्थके स्थानमें सोना डाला जाय (रसें. चि. म. । अ. ९; भा. प्र.; र. चं., तो इसीका नाम गर्भचिन्तामणि हो जाता है। र. सा. सं.; र. ग. सुं. । कुष्ट.) (१५६०) गलत्कुष्ठनाशनरसः(यो.स.।समु.७) रसो बलिस्ताम्रमयः पुरोग्निसूताभ्रगन्धायसशुल्वधारा शिलाजतुःस्थाद्विषतिन्दुकोग्रे। करञ्जबीजानि शिलाजतुश्च । सर्व च तुल्यं गगनं करञ्ज फलत्रिकं गुग्गुलुचित्रको च बीजं तथा भागचतुष्टयश्च ॥ सर्व समांशं विषतिन्दुकश्च ।। संमर्य गाढं मधुना घृतेनक्षौद्रेण साध सघृतं विमर्य बल्लद्वयं चास्य निहन्त्यवश्यम्। संस्थाप्य काचे दिनसप्तभाण्डे । कुष्ठं किलासमपि वातरक्तं वल्लप्रमाणं पयसासमेत ___ जलोदरं वाथ विबद्धमूलम् ॥ खाद्यं गलत्कुष्ठविनाशनाय ।। विशीर्णकर्णाङ्गलनासिकोऽपि पथ्यं विरक्त लवणेन भोज्यं ___ भवेत् प्रसादात् स्मरतुल्यमूर्तिः ॥ पयः सितातण्डुलगोधुमाश्च । शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, ताम्र भस्म, लोह वृन्ताकमाषायहितं च वये । भस्म, शुद्ध गूगल, चीता, शिलाजीत, कुचला और स्त्रीसेवनं कुष्ठविकारवद्भिः॥ वच १-१ भाग तथा अभ्रक भस्म, और करञ्ज शुद्ध पारा, अभ्रक भस्म, शुद्ध गन्धक, लोह- (करंजवे)की गिरी ४-४ भाग लेकर प्रथम पारद भस्म. गिलोय. करञ्जबीज (करनवेकी गिरी) शिला- और गन्धककी कजली बना लीजिए पश्चात् अन्य जीत, त्रिफला (हर्र, बहेड़ा, आमला) गूगल, चीता ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर खूब खरल कीजिए। और शुद्ध कुचला (चुकला ) समान भाग लेकर इसे ४ रत्तीकी भात्रानुसार (प्रातः सायं २-२ प्रथम पारे और गन्धककी कजली बना लीजिए. रत्ती) घृत और शहदके साथ सेवन करनेसे, कुष्ट, तत्पश्चात् उसमें अन्य औषधोंका चूर्ण मिलाकर । किलास, वातरक्त, और पुराना जलोदर, अवश्य शहद और घीमें धोटकर सात दिन तक काचपात्र नष्ट हो जाता है; और यदि कर्ण, उंगली, नासि(मर्तबान या बरनी आदि) में रक्खा रहने दीजिए। कादि भी गल गई हों तो वह सब पुनः पूर्ववत् इसे २ रत्तीकी मात्रानुसार दूधके साथ सेवन होकर मनुष्य कामदेव सदृश रूपवान हो जाता है। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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