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रसप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः।
[१०५] सप्तधा भावयेद्वैद्यो गुञ्जामानां वटीं चरेत् ।। गर्भपीयूषवल्लीरसः (भै. र.। स्त्री. धन्वं । सूति.) गर्भचिन्तामणिरयं पूर्ववद्गुणकारकः॥ (गर्भचिन्तामणि रस (वृहद् ) अवलोकन कीजिएं।)
शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, स्वर्ण भस्म, लोह, । (१५५८) गर्भविनोदरसः । चांदी भस्म, सोनामक्खी भस्म, हरताल भस्म, बंग | (र. चं. । स्त्री. रो.; र. रा. सुं.; र. सा. सं; भस्म और अभ्रक भस्म बराबर बराबर लेकर सबको र. र. सूतिका; र. चि । अ. ९) ब्राह्मी, बासा ( अडूसा ) भंगरा, पित्तपापड़ा और त्रिभागं कटुकं देयं चतुर्भागं च हिङ्गुलम् । दशमूलके रस (या काथ) को पृथक् पृथक् ७-७ जातीकोषं लवङ्गं च प्रत्येकश्च त्रिकार्षिकम् ।। भावना देकर एक एक रत्तीकी गोलियां बना लीजिए। सुवर्णमाक्षिकस्यापि पलार्ध प्रक्षिपेद्बुधः। ।
___ यह वृहद्गर्भचिन्तामणि रस गर्भिणीके ज्वर, जलेन मर्दयित्वाऽथ चणमात्रा वटीकृता॥ दाह, प्रदर और सूतिका रोगोंको नष्ट करता है। निहन्ति गर्भिणीरोगं भास्करस्तिमिरं यथा ॥ (१५५७) गर्भपालरसः (र. चं. । स्त्रीरो.) त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल)का चूर्ण ३ भाग हिङ्गलं नागवङ्गौ च त्रिजातं च कटुत्रयम ॥६३३ (३ कर्ष), शुद्ध हिंगुल (शंगरक) ४ भाग; जायफल धान्यकं कृष्णजीरश्च चयं द्राक्षा सुरद्रमः। और लौंग ३-३ कर्ष (३॥ तोले) तथा सोनाकर्षमानं पृथकसर्व कर्षाधं लोहभस्म च ॥६३४॥ मक्खी भस्म आधा पल (२॥ तोले) लेकर सबको सप्ताहं मर्दयेत्खल्वे विष्णुकान्तारसेन च। जलसे घोटकर चनेके बराबर गोलियां बना लीजिए। गुञ्जामात्रा च वटिका द्राक्षाकाथेन योजयेत् ॥ इनके सेवनसे गर्भिणीके रोग इस प्रकार नष्ट मासप्रथममारभ्य नवमासान्तमेव च। होते हैं जिस प्रकार सूर्योदयसे अन्धकार । . गर्भिगीरोगनाशार्थ गर्भपालरसः स्मृतः ॥२३६ (१५५९) गर्भविलासरसः'
शुद्ध हिंगुल, नागभस्म, बंगभस्म, दालचीनी, | (र. चं, भै. र.; धन्वं. र. र.; र. र. स.; र. का. तेजपात, इलायची सोंठ, मिर्च, पीपल, धनिया, | धे। सूतिका.; र. चिं. म. अ. ९) . पोपल, जीरा, चव्य, मुनक्का और देवदारु १-१ | रसगन्धं तुत्थश्च व्यहं जम्बीरमर्दितम् । कर्ष (१। तोला) और लोहभस्म आधा कर्ष लेकर त्रिभावितं त्रिकटुना देयं गुञ्जाचतुष्टयम् ॥ सबको सात दिन तक विष्णुक्रान्ता (कोयल) के | गर्भिण्याःशूलविष्टम्भज्वराजीणेषु केवलम् । रसमें घोटकर १-१ रत्तीकी गोलियां बना लीजिए। तुत्थस्थाने स्वर्णदेयं रसश्चिन्तामणिस्मृतः॥
इस "गर्भपाल” रसको गर्भिणीको गर्भके समान भाग शुद्ध पारा, गन्धक और शुद्ध प्रथम माससे आरम्भ करके नवम मास पर्यन्त सेवन | नीला थोथा, लेकर दोनोंको ३ दिन तक जम्बीरी करानेसे उसके समस्त रोग नष्ट होते हैं। नीबूके रसमें (रसकामधेनुके लेखानुसार काजीमें) १ र. सा. सं. का सूतिका विनोद भी यही है। २ सौवीरमर्दितमिति रसकामधेनौ ।
भा०१४
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