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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भारत - भैषज्य रत्नाकरः । [ १०४ ] (१५५३) गरुडरस : (र. का. घे. ज्वर. ) बीजं पलाशजं गुञ्जा निशा दन्तीफलं तथा । क्षारद्वयं चातिविषा कन्दं चामरसंज्ञकम् ||८३९ रसोनं टङ्कणं चूर्ण तुत्थैकं दरदं विषम् । भागोत्तरमिदं कृत्वा गोमूत्रेण विभावितम् ॥ योजयेन्निम्बुकद्वावै ज्ञात्वा मलबलाबलम् । ज्वरान्सर्वान्निहन्त्याशु संनिपातान्महोत्कटान् ॥ श्लेष्मणःसम्भवान्रोगांस्तथा वै सर्ववातजम् । अमोघवीर्यमेनं चागदोऽयं गरुडोयथा ||८४२ ॥ पलाशके बीज ( ढकपन्ने ) गुञ्जा (चौंटली ) हल्दी, जमालगोटा, जवाखार, सज्जीखार, अतीस, चमारआलु, ल्हसन, सुहागेकी खील और शुद्ध नीलाथोथा १-१ भाग शुद्ध हिंगुल ( शंरंगक) २ भाग और शुद्ध मीठा तेलिया ३ भाग लेकर सबको गोमूत्रमें भली भांति खरल कर लीजिए । बस रस तैयार है । | इसे दोष और बलाबल के अनुसार नीबू के रसके साथ सेवन करानेसे समस्त प्रकारके बर, भयङ्कर सन्निपात, कफज और वातज रोग नष्ट होते हैं । (१५५४ ) गर्भचिन्तामणिरसः (र. रा. सुं.: र. सा. सं.; र. र. । सूतिका. ) रसं तारं तथा लौह प्रत्येकं कर्षमानतः । कर्षत्रयं तथा चाभ्रं कर्पूरं वङ्गताम्रकम् ॥ जातीफलं तथा कोषं गोक्षुरश्च शतावरी । बलातिबलयोर्मूलं प्रत्येकं तोलकं शुभम् ॥ afari निहन्त्याशु स्त्रीणाञ्चैव विशेषतः । गर्भिण्या ज्वरदाहञ्च प्रदरं सूतिकाभयम् ॥ रस सिन्दूर, चांदी भस्म और लोह भस्म Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ गकारादि १ - - १ कर्ष ( १ तोला ), अभ्रक भस्म ३ कर्ष और कपूर, बंग भस्म, ताम्र भस्म, जायफल, जावित्री, गोखरु, शतावर तथा खरैटी और कंधीकी जड़ १-१ कर्ष लेकर पानी में घोटकर २-२ रती की गोलियां बना लीजिए । इनके सेवन से सन्निपात और विशेषतः स्त्रियों का सन्निपात गर्भिणीका ज्वरदाह तथा प्रदर और सूतिका रोग ( परसूत ) नष्ट होता है । (१५५५) गर्भचिन्तामणि रसः (रॅ. रा. सुं.; र. सा. सं.; र. र. । सूतिका. ) जातीफलं टङ्कणं च व्योषं दैत्येन्द्ररक्तकम् । तचूर्ण समभागेन मदितं महरद्वयम् ।। जम्बीररसयोगेन वटीङ्कर्याद्विचक्षणः । गुञ्जाद्वयं प्रमाणन्तु खलु वैद्यः प्रयत्नतः ॥ आर्द्रकस्प रसेनैव भावयेदुष्णवारिणा । निहन्ति सर्वरोगञ्च भास्करस्तिमिरं यथा ॥ जायफल, सुहागेकी खील, सोंठ, मिर्च, पीपल और शुद्र शंगरफके समान भाग चूर्णको २ - २ पहर तक जम्बीरी नीबू और अदरखके रसमें घोटकर २ - २ रत्तीकी गोलियां बना लीजिए | इन्हें उष्ण जलके साथ सेवन कराने से गर्भणीके समस्त रोग इस प्रकार नष्ट हो जाते हैं। जैसे सूर्योदयसे अन्धकार | (१५५६) गर्भचिन्तामणि रसः (वृहद् ) ( र. रा. सुं. र. र. र. सा. सं. । सूति. ) सूतं गन्धं तथा स्वर्ण लोहं रजतमाक्षिके । हरितालं वङ्गभस्माप्यभ्रकं समभागिकम् ॥ भावना खलु दातव्या रसैरेषां पृथक् पृथक् । ब्राह्मीवासाभृङ्गराजपर्पटी दशमूलकैः ॥ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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