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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् द्वितीयो भागः। [१०३] जयादलरसेनापि काकमाच्या रसेन वा। उसमें इस कज्जलीको कोयलोंकी आग पर पकाइये शृङ्गवेररसेनापि वर्धमानेन खल्वयेत् ॥१२१।। और जब पिघल जाय तो गायके गोबरको भूमिशृङ्गवेररसेनापि काकमाच्या रसेन च। पर बिछाकर उसपर केलेका पत्ता बिछाकर उसके रसं गन्धद्वयं शुद्धं लोहपात्रे प्रियोत्तमे ॥१२२॥ ऊपर इसे डाल दीजिए, और उसके ऊपर दूसरा एकीकृत्वैव तावच्च खल्वयेदितिसप्तधा। केलेका पत्ता रखकर गोबरसे दवा दीजिए और यावच्चनीलवर्णःस्थाकोलाङ्गारेण पाचयेत् ॥ | ठण्डा होने पर ऊपरका गोवर आदि हटाकर गोमयस्यालवाले च स्थापिते कदलीदले। पर्पटी निकाल लीजिए । ढालयेत्पाकवित्माज्ञस्ततस्तु प्राशयेन्नरः ॥१२४ इस “गन्धाश्मपर्पटी" को पथ्य पालन खादेदिमां सुखार्थाय पथ्यभुग्भिःप्रयुज्यते।। पूर्वक सेवन करनेसे बवासीर, संग्रहणी, आमशूल, गन्धाश्मपर्पटी चैषा सिद्धा लोकस्य सिद्धिदा॥ कामला, पाण्डु, प्लीह (तिल्ली) गुल्म, जलोदर, दुर्नाम ग्रहणीमामशूलं च ग्रहणीगदम् । भस्मक, आमवात ( गठिया) और कुष्ठ, रोग नष्ट कामलापाण्डुरोगश्च प्लीहगुल्मजलोदरम् ।।१२६, होता है, तथा मनुष्य बलिपलित रहित होकर भस्मकं चामवातं च कुष्ठानि च भृशं हरेत् । १०० वर्ष पर्यन्त जीवित रह सकता है। जीवेद्वर्षशतं साग्रं बलीपलितवर्जितः ॥ १२७॥ (मात्रा-२-४ रत्ती तक। अनुपान---तक । गन्धकको लोहपात्रमें अग्निपर पिधलाकर | विशेष सेवन विधि रस पर्पटी में देखिए ।) भंगरेके रससे पूर्ण पात्रमें डाल दीजिए, और ठण्डा | (१५५२) गरनाशनरसः (र.चं. यो.र.।विषा.) होनेपर निकालकर पुनः पिधलाकर भांगके पत्तोके | शुद्धभूतं मृतं स्वर्ण संशुद्धं हेममाक्षिकम् । रसमें डालिए, इसी प्रकार मकोय और अद्रकके | त्रयाणां गन्धकं तुल्यं मृयात्कन्याद्रवैर्दिनम् ।। रसमें भी शुद्ध कोजिए। अब १ भाग शुद्ध पारद तच्छुकं ससितक्षौषि भक्षयेत्सदा । और २ भाग उक्त गन्धकको धोटकर लोह पात्रमें वह्निमूलं शतं क्षीरैरनुस्याद्गरनाशनम् ॥ डालकर अद्रक और मकोयके रसकी ७-७ भावना शुद्ध पारद, स्वर्ण भस्म और शुद्ध सोनामक्खी दीजिए. (रस में भिगोकर धूपमें रख दीजिए, जब | १-१ भाग तथा शुद्ध गन्धक ३ भाग लेकर सूख जाय तो फिर नया रस डालिए इसी प्रकार सबको १ दिन घृतकुमारी ( घी कुमार )के रसमें दोनों ओषधियोंका रस ७--७ वार डालकरं सुखा- खरल कीजिए । जब घोटते घोटते सूख जाय तो इये । रस इतना डालना चाहिए कि ओषधिसे १ | रस तैयार समझिए । अंगुल ऊपर रहे ) और इतना धोटिए कि धोटते । इसमें से १ माषा औषध मिश्री और शहदमें धोटते गेलवर्ण हो जाय । मिलाकर चीतेसे सिद्ध* दूधके साथ खानेसे गरविष अब एक लोहपात्रमें थोड़ा धी डालकर । (कृत्रिम विष अथवा उपविष )का नाश होता है। * चीता १ भाग दूध ८ भाग पानी ३२ भाग । दूध शेष रहने तक पकाकर छानलें । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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