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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org द्वितीयो भागः । रसप्रकरणम् ] ( अनुपान - बरनेकी छालका काथ । ) (१५४४) गन्धकादिरस: (वृ.नि.र. रक्तपित्त.) गन्धं सूतं माक्षिकं लोहचूर्ण सर्व पृष्टं फलेोदकेन । लौहे पात्रे गोपयसा च धृत्वा रात्रौ दद्याद्रक्तपित्तमशान्त्यै ॥ शुद्ध गन्धक और शुद्ध पारद, सोना मक्खी भस्म और लोहभस्म समान भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली कर लीजिए, तत्पश्चात् अन्य avari मिलाकर सबको लोहे के खरलमें त्रिफला के काथ साथ खरल कीजिए । इसे रात्रिके समय गोदुग्धके साथ सेवन करनेसे रक्तपित्त रोग नष्ट होता है । ( मात्रा २ रत्ती । ) ( १५४५) गन्धपिष्टिः ( बन्धनम् ) (रसें. चि. म. । अ. ५ ) शुद्धस्तपलैकन्तु कषैकं गन्धकस्य च । स्विन्नखल्वे विनिः क्षिप्य देवदालीरसप्लुतम् । मर्दयेच कराङ्गुल्या गन्धबद्धः प्रजायते ॥ तप्त खरलमें (खरलको तुषाभि पर रखकर उसमें ) १ पल (५ तोले) शुद्ध पारा और १ कर्ष (१। तोला) शुद्ध गन्धकका चूर्ण तथा थोड़ासा देवदाली ( बिन्दाल ) का रस डालकर उंगलीसे मलने से गन्धपिष्टि बन जाती है । (१५४६) गन्धपिष्टिः ( बन्धनम् ) (रसें. चि. म. । (अ. ५) भागा द्वादशसूतस्य द्वौ भागौ गन्धकस्य च । मर्द्दयेद् घृतयोगेन गन्धबद्धः प्रजायते ॥ १२ भाग शुद्ध पारद और २ भाग शुद्ध Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [१०१] गन्धक चूर्णको घृतके साथ घोटने से गन्धपिष्टिः बन जाती है । (१५४७) गन्धलोहः (रसें. चि. म. । अ. ९; बृ. यो त । त. ६१ आयु. प्र. अ. २, र. चं. । रसा. ) गन्धं लौह भस्म मध्वाज्ययुक्तं सेव्यं वर्षे वारिणा त्रैफलेन । शुक्रे केशे कालिमा दिव्यदृष्टिः पुष्टिवीर्यं जायते दीर्घमायुः ॥ ५३ ॥ समान भाग शुद्ध गन्धक और लोहभस्मको एकत्र खरल करके ( २ - ३ रत्तीकी मात्रानुसार ) शहद और घृतमें मिलाकर १ वर्ष प्रर्यन्त त्रिफला काके साथ सेवन करनेसे श्वेतकेश काले हो जाते हैं एवं दिव्यदृष्टि, पुष्टि, वीर्य और दीर्घायु प्राप्त होती है। (१५४८) गन्धामृतो रसः (रसें. चि. म. । अ. ८; आ. प्र. । अ. १; भै. र. वाजी.; र. मं.;. रा. सुं. । रसाय; र. र. । रसा. उ. २) भस्ममृतं द्विधा गन्धं क्षणं कन्यां विमर्द्दयेत् । रुद्ध्वा लघुपुढे पच्यादुद्धृत्य मधुसर्पिषा ॥ निष्कमात्रं जरामृत्युं हन्ति गन्धामृतो रसः । समूलं भृङ्गराजञ्च छायाशुष्कं विचूर्णयेत् ॥ तत्समं त्रिफलाचूर्ण सर्व तुल्या सिता भवेत् । पलैकं भक्षयेच्चानु सेवनाच्च ज्वरापहः ।। १ भाग पारद भस्म ( रस सिन्दूर) और २ भाग शुद्ध गन्धकके चूर्ण को थोड़ी देर घृतकुमारी (घीकुमार) के रस में घोटकर उसका एक गोला बना लीजिए और दो शरावोंमें बन्द करके लघु पुटमें फूंक दीजिए । जब स्वांग शीतल हो जाय तो निकालकर चूर्ण कर लीजिए । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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