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रसप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
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यह — गन्धककजली ' सर्वव्याधिनाशक और तीव्र हो जाती है तथा रोगरहित दीर्घायु प्राप्त आयुवर्द्धक है।
होती है। (१५१०) गन्धककल्पः (१)
पथ्य-दूधभात । वं. से. । रसा.; आ. प्र. । अ. २) (१५१२) गन्धककल्पः (३) (आ.प्र. । अ.२) चूर्णीकृत्य पलानि पञ्च
शुद्धो गन्धो निष्कमात्रसदुग्ध: नितरां गन्धाश्मनो यत्नत
सेव्यो मासं शौर्यवीर्यप्रवृद्धेः। स्तच्चूर्ण त्रिगुणो च मार्कव
षण्मासात्स्यात्सर्वरोगप्रणाशो रसे छायाविशुष्कीकृतम् । दिव्या दृष्टिर्दीर्घमायुः सुरूपम् ॥ पथ्याचूर्णमथो तथा मधु
४ माशेकी मात्रानुसार शुद्ध गन्धकको दूधके घृतं प्रत्येकमेकं पलम् साथ १ मास पर्यन्त सेवन करनेसे शौर्य, वीर्यकी वृद्धो यौवनमेति पास
वृद्धि होती है, तथा छ मास पर्यन्त सेवन करनेसे युगलं खादेनरः प्रत्यहम् ॥ समस्त रोग नष्ट होकर दिव्यदृष्टि, दीर्घायु और ५ पल शुद्ध गन्धक चूर्णमें १५ पल भांगरे- सुरूपकी प्राप्ति होती है। का रस मिलाकर छायामें सुखा लीजिए । तत्पश्चात् । (१५१३) गन्धककल्पः (४) (आ. प्र.। अ. २) इसमें १-१ पल हर्रका चूर्ण और घृत तथा शहद गन्धकस्य पलं चैकं रसस्यार्धपलं तथा । मिला दीजिए।
कुमारीरससंघृष्टं दिनैकं गोलकी कृतम् । इसमें से प्रतिदिन यथोचित मात्रानुसार प्रातः __ अन्धमूषाधृतं ध्मातं लेहयेन्मधुसर्पिषा सायं सेवन करनेसे वृद्ध मनुष्यभी युवावस्थाको प्राप्त मासमात्रप्रयोगेण जरादारिद्रयनाशनम् ।। हो जाता है।
शुद्ध गन्धक १ पल और शुद्ध पारा आधा मात्रा-१ माशा । अनुपान दृध । पल लेकर घोटकर कजली बना लीजिए तत्पश्चात (१५११) गन्धककल्पः (२) (आ. प्र. । अ. २) उसे १ दिन पर्यन्त धी कुमारके रसमें घोटकर इत्थं विशुद्धं त्रिफलाज्यभृङ्ग
गोला बनाकर सूख जाने पर अन्धभूषामें बन्द करके मध्वन्वितः शाणमितो हि लीढः ।
पुट लगा दीजिए; और स्वांग शीतल होने पर गृध्राक्षितुल्यं कुरुतेऽसियुग्मं
निकालकर सेवन कीजिए। करोति रोगोज्झितदीर्घमायुः ।।
इसे १ मास पर्यन्त सेवन करनेसे जरा __ (अत्र पथ्यं तु दुग्धोदनम् ) । ( वाक्य ) नष्ट हो जाती है।
शुद्ध गन्धक, त्रिफलाचूर्ण, घृत, भांगरा और । (१५१४) गन्धकंकल्पः (५) (आ. प्र. । अ. २) शहद बराबर बराबर मिलाकर प्रतिदिन ४ माशेकी द्विनिष्कपमितो गन्धः पीतस्तैलेन शोधितः । मात्रानुसार सेवन करनेसे दृष्टि गृध्रदृष्टिके समान पश्चान्मरिचतैलाभ्यामपामार्गजलेन च ॥
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