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________________ www.kobatirth.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [९] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [गकारादि ....ANIRONMAnArunnind (से. वि. प्रातःकाल. १ गोली शीतल | | ततस्तु रक्तिकामस्थ जीरकस्य च माषकम् । जलसे खाएं ।) | मापैकं लवणस्यापि पणे कृत्वा प्रदापयेत् ।। (१५०८) गदमुरारिः रसः | ज्वरे त्रिदोषजे घोरे जलमुष्णं पिबेदनु । (वृ. नि. र., र. का. धे. । ज्व. चि., छी शर्करया दद्यात् सामे दद्यात्तथा गुडम् ।। र. चि. म. । स्त. ११) क्षये च छागदुग्धं स्यादनुपानं प्रयोजितम्। रसवलिफणिलोहव्योमताम्राणि तुल्यान्य- रक्तातिसारे कुटजमूलबल्कल रसम् ॥ थरसदलेभागो वत्सनार्गः प्रदिष्टः । रक्तक्षये तथा दद्यादुदुम्बरभवं रसम् । भवति गदमुरारिश्चास्य मुञ्जावारा"- - सर्वव्याधिहरश्चायं गन्धकः कजलीकृतः ॥ क्षपयति दिवसेन प्रौढमामज्वराख्यम् ॥ आयुर्वृद्धिकरश्चायं मृतं चापि प्रबोधयेत् ॥ __ शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, नाग ( सीसा ) कटेली, संभालू और नाटे करञ्जका स्वरस भस्म, लोह भस्म, अभ्रक भस्म और ताम्र भस्म | बराबर बराबर लेकर एक मिट्टीके ठीकरेमें भरकर १-१ भाग तथा मीठा तेलिया ( शुद्र ) आधा धीमी अग्नि पर चढ़ा दीजिए. और साथही उसमें भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कजली बना शुद्ध गन्धकका चूर्ण भी मिला दीजिए । जब लीजिए तत्पश्चात् उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण | गन्धक पिधल जाय तो उसमें उसके (गन्धकके ) मिलाकर भली भांति घोट लीजिए। बराबर पारा डालकर अच्छी तरह मिला दीजिए इसे अद्रकके रसके साथ १ रत्तीकी मात्रा- | और फिर नीचे उतारकर खरलमें डालकर इतना नुसार देनेसे प्रबल आमञ्वर एकही दिनमें नष्ट घोटिये कि वह घुटते घुटते कजलके समान हो हो जाता है ।। जाय । इसीका नाम गन्धककजली है। (१५०९) गन्धककजलीविधिः ___एक रत्ती यह कजली १ माषा जीरके चूर्ण (र. चं.; र. सा. सं.; भै. र. । वर.) और १ माषा सेंधानमकमें मिलाकर नागरबेलके कण्टकारिः सिन्धुवारस्तथा नाटकरञ्जकम् ।। पानके साथ उष्ण जलानुपानसे सेवन करनेसे धोर अमीषां रसमादाय कृत्वा खर्परखण्ड के ॥ ... | सन्निपातञ्वर नष्ट होता है । पक्षिप्य गन्धकं तत्र ज्वालां मृद्वग्निना ददेत् । इसे छर्दि ( वमन ) में शर्करा ( खांड ) के गन्धके स्नेहतापन्ने पारदं तत्सम क्षिपेत् ॥ साथ, आममें गुड़के साथ, क्षयमें बकरीके दूधके मिश्रीकृत्य ततो द्वाभ्यां द्रवं तमवतारयेत् । । साथ, अतिसारमें कुड़ेकी छालके काथके साथ और आमदयेत् तथा तं तु यथास्थाकञ्जलप्रभम् ॥ रक्तक्षयमें गूलरके रसके साथ सेवन करना चाहिए । १ व्योषेति रसकामधेनौ । २ वलि र. का. धे.। ३ नागएतत्प्रदिष्टमिति रसचिन्तामणो कामधेनौ च । ४ गुजार्द्धवा रेति रसचिन्तमणौ । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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