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भारत-भैषज्य-रत्नाकर
[१९४] अभयारिष्टः (४) (ग. नि.) गिलोय ६। सेर, दशमूल ६। सेर। सवको अष्टौ पलानि वर्षाभू दशमूलार्कचित्रकाः। १२८ सेर जलमें पकाकर चौथा भाग शेष रहने दन्तीश्यामात्रिवृद्रानाश्चैवं स्युत्रिफलाढकम् ॥ पर छान ले और इसमें गुड़ १८॥ सेर, जीरा १ अम्बुद्रोणाष्टके पक्त्वा पादशेषे रसे स्थिते । सेर, पित्तपापड़ा १० तोले, सतोनेकी छाल, त्रिकुटा, द्वै गुडस्य तुले पूते तत्पश्चाद्घटके क्षिपेत् ॥ नागरमोथा, नागकैसर, कुटकी, अतीस और इन्द्रजौं गवा मूत्राढकं प्रस्थौ द्वावयोरजसस्तथा। प्रत्येक ५-५ तोले मिलाकर यथाविधि मिट्टी के विडॉ कुटजं कुष्ठं चित्रकं मरिचं वचाम् ॥ | पात्र में सन्धान करके रक्खा रहने दे । यह अरिष्ट सञ्चूर्ण्य द्विपलान्यस्मिन्दत्वा मासस्थितं पिवेत्। सब प्रकारके ज्वरोंका नाश करता है। आभयोऽयमरिष्टेन्द्रो मेहाशः कुष्ठशोफहा॥ । [१९६] अरविन्दासवः । प्लीहपाण्डामयान् गुल्मान्
(आ. वे. सं, भै. र. बालरोगा.) जठराणि च नाशयेत् ॥
अरविन्दमुशीरश्च काश्मरी नीलमुत्पलम् । पुनर्नवा, दशमूल, आक, चीता, दन्ती, काली | मञ्जिष्ठलाबलामांसीरम्बुदं शारिवां शिवाम् ॥ निसोत, रास्ना ४०-४० तोले, त्रिफला (मिलित) विभीतकवचाधात्रीः शठी श्यामां सनीलिनीम्। ४ सेर । सवको २५६ सेर जलमें पका, चौथा | पटोले पर्पटं पार्थ मधुकं मधूकं मुराम् ॥ भाग शेष रहनेपर छानकर ठंडा करके उसमें पलमानेन संगृह्य द्राक्षायाः पलविंशतिम् । १२॥ सेर गुड़ डाले और फिर ८ सेर गोमूत्र, लोह धातकी पोडशपला जलद्रोणद्वये क्षिपेत् ॥ चूर्ण (लोह भस्म) २ सेर, वायबिडंग, कुड़ेकी छाल, | शर्करायास्तुलां तत्र तुलाधे माक्षिकस्य च। कूठ, चीतामूल, मिर्च और बच प्रत्येक १०-१० । मासं संस्थापयेद् भांडे मृत्तिकापरिनिर्मिते ॥ सोले । कूट कर डाले और यथाविधि संधान करके | बालानां सर्वरोगघ्नो बलपुष्टयग्निवर्द्धनः ।। रक्खे । १ मास बाद निकाल कर छान ले। यह । अरविन्दासवः प्रोक्त आयुष्यो ग्रहदोषहत ॥ अरिष्ट प्रमेह, बवासीर, कोढ़, सूजन, तिल्ली, पाण्डु, कमल, खस, खम्भारीके फल, मजीठ, नीलोगुल्म और उदररोगोंका नाश करता है। फर, इलायची, बला, जटामांसी, नागरमोथा, [१९५] अमृतारिष्टः (आ. वे. सं. ज्वर.) सारिवा (अनन्तमूल), हैड, बहेड़ा, बच, आमला, अमृतायाः पलशतं दशमूली शतं तथा।। कचूर, काली निसोत, नीलका पंचांग, पटोल पत्र, चतुोणे जले पक्त्वा कुर्यात् पादावशेषितम् ॥ पित्तपापड़ा, अर्जुनकीछाल, महुवा, मुल्हैठी और शीते तस्मिन् रसे पूते गुडस्य त्रितुलाःक्षिपेत् । मुरामांसी। प्रत्येक ५-५ तोले, मुनका १०० अजाजीषोडशपलं पर्पटस्य पलद्वयम् ॥ तोले, धायके फूल १ सेर, पानी ६४ सेर, खांड सप्तपर्ण त्रिकटुकं मुस्तकं नागकेशरम् । ६। सेर, शहद ३ सेर १० तोला । सबको मिलाकटुकातिविषे चैन्द्रयवञ्च पलसम्मितम् ॥ । कर यथाविधि मिट्टी के बरतनमें सन्धान करके एकीकृत्य क्षिपेन्द्राण्डे निदध्यान्मासमात्रकम् ।। १ मास तक रक्खा रहने दे । यह आसव बालकों अमृतारिष्ट इत्येष सर्वज्वरकुलान्तकृत् ।। ' । के समस्त रोगोंका नाश करता है, बल, पुष्ठि आयु
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