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अकारादि-तैल
(६५)
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स्नेहपाककल्पेन विपचेदेतदणु- । दद्यादेषोऽणुतैलस्य नावनीयस्य संविधिः ॥
तैलमुपदिशन्ति वातरोगेषु, तस्य मात्रां प्रयुञ्जीत तैलस्वार्द्ध पलोन्मिताम् । अणुभ्यस्तैलद्रव्येभ्यो निष्पाद्यते इत्यणुतैलम् । स्निग्ध स्विन्नोत्तमाङ्गस्य पिचुना नावनैस्त्रिभिः ___कोल्हु (तेली लोग लकड़ीके जिस यन्त्र में , व्यहात् व्यहाच सप्ताहमेतत्कर्म समाचरेत् । तिल,सरसों आदि भरकर तेल निकालते हैं वह यन्त्र) | निवातोष्णसमाचारो हिताशी नियतेन्द्रियः ।। जो बहुत पुराना हो और जिसने बहुत दिनों तक | तैलमेतत्रिदोषघ्नमिन्द्रियाणां बलप्रदम् । खूब तेल पिया हो, लाकर उसके छोटे २ टुकड़े | प्रयुञ्जानो यथाकालं यथोक्तानश्नुते गुणान् ।। करले और उन्हें कूट कर एक बड़े कढ़ावमें घने | लाल चन्दन, अगर, तेजपात, दारुहल्दी की पानीमें भिगोदे फिर उसे अग्नि पर चढ़ावे ऐसा | छाल, मुल्हैठी, बला (खरैटी), पुण्डरिया, छोटी इलाकरने से पानी के ऊपर तेल आजायगा उसे हथेलीसे यची, बायबिडंग, बेल की छाल, कमल, सुगन्ध उतारकर अन्य पात्रमें एकत्रित करलो फिर उसे | बाला, खस, दारचीनी, केवटी मोथा, सारिवा वातघ्न औषधियों* के कल्क के साथ यथा विधि शालपणी, जीवन्ती, पृश्निपणी, देवदारु, शतावर, सिद्ध करे । यह तेल वात रोगों का नाश करता है। रेणुका, बडी कटेली, छोटी कटेली, शल्लकी और कमल [१८०] अणु तैलम् (२)
केसर । (सब पदार्थ समान भाग मिलाकर ६। सेर ___ (च. सं. । सू. अ. ५)
लेकर अधकुटे करले)। सबको १०० सेर स्वच्छ चन्दनागुरुणी पत्रं दावीत्वक् मधुकं बलाम्। आकाश जलमें पकाकर २५ सेर पानी शेष रहनेप्रपौण्डरीकं सूक्ष्मैलां विडॉ विल्वमुत्पलम् । | पर छानले । इसके बाद २॥ सेर तिलके तेल में हीबेरममयं+ वन्यं त्वङ्मुस्तं शारिवां स्थिराम् |
समान भाग यह काथ डाल कर पकावे । इसी जीवन्तीं पृश्निपर्णी च सुरदारु शतावरीम् ॥ प्रकार १० बार करके इस दस गुने क्वाथके साथ हरेणुं वृहतीं व्याघीं सुरभी पद्मकेशरम् ।
| तैल पाक सिद्ध करे। इसके अन्तिम (दसवें) पाकमें विपाचयेच्छतगुणे माहेन्द्रे विमलेऽम्भसि ॥
समान भाग (२॥ सेर) बकरी का दूध भी डाल तैलाद्दशगुणं शेषं कषायमवतारयेत् । देना चाहिये। तेन तैलं कषायेण दशकृत्वो विपाचयेत् ॥ व्यवहार विधि–पहिले शिर में तेल लगाकर अथास्य दशमे पाके समांशं छागलं पयः। फिर स्वेद देकर (सीधा लिटाकर) रुई के फाहे से
* वातघ्न ओषधियांः-यथा-भद्दार्वादिगण तीन बार करके २॥ तोला यह तेल दोनों नस्को(देवदारु, हल्दी, दारुहल्दी, भारती, बरनेकी | रोमें निचोड़ना चाहिये । छाल, मेंढासिंगी,पियाषांसा, गुन्द पटेर, त्रिफला, । इस प्रकार इस तेलका नस्य एक एक दिन गोखरू, सफेद आक, अरणी, धतूरा, पाषाण के अंतर से (तीसरे दिन) ७ दिन तक लेना भेद, शतावर, शालपर्णी, पटोल-पत्र, कुटकी, पुनर्नवा, अगथिया, जौ), इसी प्रकार दशमूल
चाहिये । नस्य सेवन काल में निर्वात स्थान, ऊष्ण आदि अन्य वातनाशक औषधियां ले सकते हैं। और पथ्य आहार बिहार करते हुए संयम से + अभयामिति पाठान्तरम् ।
रहना चाहिये।
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