________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(५८)
भारत-मैषज्य-रत्नाकर
चव्य, चित्रक, पाठा, वचा, पिप्पलीमूल, । कल्कैरेषां घृतं सिद्धमजेयमिति विश्रुतम् । मेदा, नागरमोथा, त्रिफला, पाढल, अस्कोता के विषाणि हन्ति सर्वाणि शीघ्रमेवाजित क्वचित् ।। पत्ते, चमेली के पत्ते, सतौना, पटोल पत्र, सहारा, मुल्हैठी, तगर, कूठ, देवदारु, रेणुका, पुन्नाग कर तथा नीम के पत्ते प्रत्येक का अधकुटा चूर्ण | (सुलतान चंपा), इलायची, एलवालक, नाग केसर, २०-२०तोले लेकर ३२ सेर जलमें तांबे के कढाव | नीलोफर, मिश्री, वायबिडंग, चन्दन, तेजपात, फूल, में पकावे, जव चतुर्थीश रह जाय तो उतार कर प्रियंगू , रोहिषतृण, हल्दी, दारु हल्दी, कटेली, छानले, और फिर उसमें निम्नलिखित द्रव्यों का बडी कटेली, दोनों सारिघा, शालपर्णी और माषकल्क तथा घृत मिलाकर घृत सिद्ध करे। कल्क | पर्णी या घृतकुमारी। इनके कल्क से सिद्ध घी द्रव्यः-अतीस और नागरमोथा २।।-२॥ तोले,
शीघ्र ही सब प्रकार के विषों का नाश करता है । यवक्षार, विडनमक, सैंधानमक १०-१० तोले । [१६१] अमृत घृतम् और पीपल २० तोले।
(च. सं. चि. अ. २३. विषचिकित्सा) ___इस घृत की मात्रा १। तोला है तथा वि- | शिरीषत्वक् त्रिकटुकं त्रिफला चन्दनोत्पले। ष्टम्भ दोष (विबंध) में २ तोले सेवन करे। वे बले शारिवास्फोता सुरभी निम्ब पाटला|| ____ इसके सेवन से सब ग्रहगिविकार, अनेक धन्धुजीवाडकीपूर्वावासासुरसवत्सकान् । प्रकार के गुल्म, वीस प्रकारके कृमि, पाण्डु, प्लीहा पाठांकोलाश्वगन्धाके मूलयष्टथापनकान् ।। और विषरोगों का नाश होता है। इसका सेवन । | विशाला बृहतीं लाक्षां कोविदारं शतावरीम् । करते हुए मध और पिडीका सेवन भी कर सकते कटभीदन्त्यपामार्गान् पृश्निपर्णी रसाञ्जनम् ।। हैं। अपतर्पण का त्याग करना चाहिए। यह |
| श्वेतभण्डाश्वखुरको कुष्ठदारु प्रियङ्गुकान् । अग्निघृत अग्नि को दीप्त करता है। विदारी मधुकात्सारं करजस्य फलं वचाम् ।। [१५९] अजापञ्चकघृतम् (भै. र. क्षय) | रजन्यो लोधमक्षांशं पिष्ट्वा साध्यं घृताटकम् । छागशद्रसमूत्रक्षीरदध्ना च साधितंसर्पिः। तल्याम्बुछागगोमच्याढके तद्विक्षापहम् ।। सक्षारं यक्ष्महरं श्वासकासोपशान्तये परमम् ।। | अपस्मारक्षयोन्मादभृतग्रहगरोदरम् ।
. बकरी की मांगनियों का रस, बकरी का | पाण्डुरोगान् क्रिमीन्गुल्मान् मूत्र, दूध, और दही तथा यवक्षारके ककसे
प्लीहोरुस्तम्भकामलाः॥ बकरीका घृत सिद्ध करे इसके सेवन से यक्ष्मा | हनुस्कन्धग्रहादींव पानाभ्यञ्जननावनैः । श्वास और खांसी में अत्यन्त शान्ति मिलती है। हन्यात्सञ्जीवयेच्चापि विपोद्वेगमृतानरान् ।।
[१६०] अजेयघृतम् (सु. सं.) नाम्नेदममृतं सर्व विषाणां स्याद् धृतोत्तमम् ।। मधुकं तगरं कुष्ठं भद्रदारु हरेणवः ।। सिरसकी छाल, त्रिकुटा, त्रिफला, सफेद पुमागैलैलवालूनि नागपुष्पोत्पलं सिता ॥ चन्दन, नीलोफर, बला, अतिबला, शारिवाx आविडङ्गं चन्दनं पत्रं प्रियङ्गामकं तथा। स्फोता, सुरभी (तुलसी), नीमकी छाल, पाढल, हरिद्रे द्वे बृहत्यौ च सारिवे च स्थिरा सहा ॥। हाफरमालीति अंगे।
For Private And Personal Use Only