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भारत-भैषज्य रत्नाकर
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लेकर इन चारों को एकत्र मिलाकर मिट्टीके बरतन विचूर्ण्य लेहयेद् युक्त्या क्षौद्रेणा रसेन वा ॥ में मन्दाग्नि पर पकावे । जब उबाल आ जाय तो | अष्टांगाख्यमिदं हन्ति सन्निपातं सुदुर्जयम् । अश्वगन्धा आदि के उपरोक्त समस्त चूर्ण को थोडे | प्रमेहं श्वासं कासश्च तन्द्राहिक्कागलग्रहान् ।। दूधके साथ पकाकर इसमें डालदे और फिर मन्दा- उर्द्धगश्लेष्महरणे उष्णे स्वेदादि कर्मणि । ग्नि पर इतना पकावें कि करछी से लगने लगे तत्प- विरोध्युष्णे मधुत्यक्त्वा कार्यैषाकज रसैः॥ श्वात् उसमें चतुर्जातका चूर्ण २ तोला डालकर कायफल, पोखरमूल, काकड़ा सींगी, त्रिकुटा, पकावे जब उसमें चावलके समान दाने पड़ने लगे धमासा, काली जीरी, इनका चूर्ण बनाकर मधु वा और घी अलग होने लगे तो उतार कर पीपलामूल, ! अद्रकके रसके साथ चाटने से दुर्जय सन्निपात, जीरा, गिलोय, लोंग, तगर, जायफल, खस, प्रमेह, श्वास, खांसी, तन्द्रा, हिचकी, गलग्रह सुगन्धवाला, सफेद चन्दन, बेलगिरी, कमल, आदि का नाश करता है और ऊर्ध्वजत्रुगत कफको धनियां, धायके फूल, वंसलोचन, आमला, खैरसार, निकालनेके लिए उष्ण स्वेद आदि देना हो तो फपूर, पुनर्नवा, *वनतुलसी, चीता, शतावर, प्रत्येक | मधुमें न देकर यह अवलेह (या कोई भी औषध) चीज ०।-०॥ तोला लेकर महीन चूर्ण करके मिलावे | अद्रकके रसमें देनी चाहिए क्यों कि मधु और और ठण्डा होने पर चिकने वर्तनमें भरकर रखे । उष्ण क्रियाका परस्पर विरोध होता है । यथा इच्छा भोजन करते हुए २॥ तोला प्रतिदिन
[१५५] अहिफेन पाकः (यो. चि.) खानेसे खांसी, श्वास, अजीर्ण, वातरक्त, तिल्ली, मद, मेदरोग, दुर्जय आमवात, शोथ, शूल, बादी,
आकल्लक केशरदेवपुष्पं, बवासीर, पाण्डु, कामला, ग्रहणी, गुल्म और अन्य जातीफलं भङ्गं सहसपाकम् । वायु और कफ से होने वाले रोगोंका इस प्रकार एतानि कुर्वीत समानि विद्वान्, नाश होता है जैसे सूर्योदय से अंधकार । इसका मूलार्द्धमागं क्षिप नागफेनम् ॥ एक मासपर्यन्त सेवन करनेसे वृद्ध युवा वन जाता क्षीरेण फेनं परिपच्य बध्वा, है। मंदाग्मि वालों के लिये हितकर, शक्ति उत्पन्न म्लासितां षड्गुणमानयोग्या। करनेवाला तथा बालकों के शरीरों को बढानेवाला, विमर्च कुर्याद् गुटिका निशायां, स्त्रियों की पुष्टि करनेवाला प्रसवकालके स्तनोंमें मुखे कृते कामयते शतानि, दुग्ध वर्द्धक, जब तक दूध बढ न जावे तब तक प्रसेवनं यः प्रकरोति नित्यं, इसे दूध के साथ पीवे । क्षीण और अल्पवीर्य पुरुषों
दृढोन्नताङ्गः स च मानवः स्यात् । के लिए यह विशेष गुणकारी काम और अग्नि- समस्तमातंगबला सकामी, वर्द्धक है । यह सर्वव्याधिहर योग सर्वोत्तम है। । व्रजन्ति रोगाः क्षयजाश्च सर्वे ।। [१५४] अष्टाङ्गवलेहः (र. र.)
अकरकरा, केसर, लौंग, जायफल, भांग और कट्फले पौष्करं शृङ्गी व्योषं यासश्च कारवी। शुद्ध सिंगरफ सब समान भाग, अफीम अकरकरेसे *फरञ्ज मुश्क ।
आधी। अफीमको दूधमें पकावे जब सख्त हो जाय
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