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रसप्रकरणम् ]
कांस्यं लघु च तिक्तोष्णं लेखनं दृक्प्रसादनम् । कृमिकुष्ठहरं वातपित्तनं दीपनं हितम् ॥
घृतमेकं बिना चान्यत्सर्वं कांस्यगतं नृणाम् । * भुक्तमारोग्यसुखदं हितं सात्म्यकरं तथा ।
iti मूत्रे वापितं परिशुध्यति । म्रियते गन्धतालाभ्यां निरुत्थं पञ्चभिः पुटैः ||
आठ भाग ताम्र और २ भाग खुरक बंग को एकत्र गलाने से कांसी बनती है । सौराष्ट्र देशकी कांस श्रेष्ठ होती है ।
मृदु,
जिस कांसी में तीक्ष्ण शब्द निकले, जो स्निग्ध, जरा श्यामता लिए हुवे सफेद और स्वच्छ हौ तथा तपाने से लाल हो जाती हो वह उत्तम होती है ।
परिशिष्ट
जिसका रंग पीला हो, जो तपाने से ताम्रके रंगकी हो जाए, खरखरी और रूक्ष हो तथा चोट न सह सके एवं घिसने से जिसमें चमक पैदा हो वह अच्छी नहीं होती। ( मूलमें “ सप्तधाकांस्यमुत्सृजेत् " लिखा है परन्तु दोष ६ ही बतलाए हैं ।)
कांसी लघु, तिक्त, उष्ण, लेखन, दृष्टिको स्वच्छ करने वाली, कृमिकुष्ठ नाशक, वातपित्त नाशक र अग्निदीपक है ।
* शुद्ध कांस्यमये पात्रे सर्वमेव हि भोजनम् । पथ्यं सञ्जायते नाग्लं घृतशाकादि वर्जितम् ॥
(र. प्र. सु. अ. ४ ) शुद्ध कांसीके पात्र में अम्ल पदार्थ, घी और शाकादिके अतिरिक्त सभी पदार्थ रखकर भोजन करना हितकर है।
भोजन रखना हितकर है |
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कांसीके पात्र में घृतके अतिरिक्त हर प्रकारका
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कांसीको तपा तपाकर गोमूत्र में बुझानेसे वह शुद्ध हो जाती है ।
कांसीके पत्रों पर गंधक और हरतालका ( नीबू के रस में घोटकर ) लेप करके यथाविधि शरावसम्पुट में बन्द करके गज पुट दें। इसी प्रकार ५ पुट देने से निरुत्थ भस्म हो जाती है ।
(९५१०) किन्नरकण्ठरसः
(र. चं. । स्वरभेदा. )
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रसं गन्धकमभ्रं च माक्षिकं लोहमेव च । कर्षप्रमाणं संगृह्य वैक्रान्तं रसपादिकम् ।। amrat तथा हेम रौप्यं हेमचतुर्गुणम् । वासायाश्च तथा भाय वृहत्या वाऽऽर्द्रकस्य च स्वरसेन सरस्वत्या भावयित्वा पृथक् पृथक् । रक्तद्र्यमिता कुर्याद्वयश्छाया प्रशोषिताः ॥ स्वरभेदानशेषांश्च कासान् श्वासांश्च दारुणान निखिलान् कफजान् व्याधीन् वातश्लेष्मसमुद्भवान् ॥
इन्यात्किन्नरकण्ठाख्यो रसोऽसौ रुद्रनिर्मितः किन्नरस्येव कण्ठस्थ स्वरोऽस्य प्राशनाद्भवेत् ॥ योगवाहिर चाप योजयन्ति भिषग्वराः । सशर्करं शुण्ठिचूर्ण क्षौद्रेण सह योजितम् ॥ कोकिलस्वर एव स्याद् गुटिकां भुक्तमात्रतः ॥
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शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, अभ्रक भस्म, स्वर्णमाक्षिक भस्म और लोहभस्म १ - १ तोला; बैकान्त भस्म ३ माशा, स्वर्ण भस्म १ ॥ माशा और रौप्य भस्म ६ माशा लेकर सबको एकत्र मिलाकर खरल