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( ब्रण में लगाना चाहिये । ) (९३२२) कर्पूरसर्पिः
परिशिष्ट
घृतप्रकरणम् ]
दुष्टव्रणप्रशमनं तथा नाडीविशोधनम् । सघ छिन्नव्रणानां च करञ्जाद्यमिहेष्यते ॥ कल्क करञ्जके पत्ते, बरने के फल, (पाठा(९३२३) कहारां घृतम् तर के अनुसार करके कोमल फल), चमेली के पत्ते, (बृ. यो. त. । . ९८; व. से. ; र. र. । गुल्मा.) पटोलपत्र, नीमके पत्ते, हल्दी, दारूहल्दी, मोम, मुलैठी, कुटकी, मजीठ, सफेद चन्दन, खस, नीलो - कडारमुत्पलं पद्मं कुमुदं मधुयष्टिका । त्पल, दो प्रकारकी सारिवा और निसोत (पाठान्तर के पक्त्वाम्बुनाथ तत्त्रवार्थ जीवनीयोपकल्कितम् ॥ अनुसार मजीठसे निसोत तक की सात चीजों के घृतं पक्त्वा नवं पीतं रक्तपित्तास्रगुल्मनुत् । स्थानमें फूल प्रियंगु, कुशकी जड़ और हिज्जल | दाहतृष्णाज्वरच्छर्दियोनिदोषहरं परम् ॥
वृक्षकी छाल; सुश्रुतके मतानुसार मजीठ आदि सातों द्रव्य भी तथा ये तीनों चीजें भी ) ११- १। तोला लेकर पानी के साथ बारीक पीस लें ।
२ सेर घीमें यह कल्क ( और ८ सेर पानी ) मिलाकर पानी जलने तक पकावें और फिर छान लें।
यह घृत दुष्ट व्रणको नष्ट करता और नाड़ी ( नासूर ) को शुद्ध कर देता है तथा तुरन्तके छिन्न मणों में भी उपयोगी है ।
( रा. मा. | व्रणा. २५)
सद्यः कर्पूरस पूरितो वस्त्रयन्त्रितः ॥ शस्त्रमहारः संरोहत्यपूयः पाकवर्जितः ॥
शस्त्राघात ( चाकू, छुरी आदिके घाव ) में कपूर मिला हुवा घी भर कर वस्त्र बांध देनेसे घाव बिना पके और बिना पीप पड़े पक जाता है । ( घी ५ तोले कपूर १ तोला । )
कल्याणघृतम् (सु. सं. )
प्र. सं. ५२२१ “महाकल्याणघृत" देखिये ।
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कल्याणघृतम् (महा)
महा कल्याण घृतम् देखिये ।
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लाल और सफेद रंग मिश्रित कमल, नीलोत्पल, सफेद कमल, कुमुद और मुलैठी समान भाग मिलित २ सेर लेकर सबको कूट कर १६ सेर पानी में पकावें और ४ सेर रहने पर छान लें।
इस क्वाथमें १ सेर नवीन घी और "जीवनीय गण १ का १० तोले कल्क मिलाकर पकांवें और पानी जल जाने पर घीको छान लें।
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यह घृत रक्तपित्त, रक्तगुल्म, दाह, तृष्णा, ज्वर, छर्दि और योनिदोषको नष्ट करता है । ( मात्रा - २ तोले 1 ) (९३२४) काकोल्यादिघृतम्
(व. से. । बालरोगा . ) क्षीरवृक्षकषाये तु काकोल्यादौ गणे तथा । विपक्तव्यं घृतञ्चापि पानीयं पयसा सह ॥
क्षीरवृक्ष ( अश्वत्थ - पीपल ) की २ सेर छालको कूट कर १६ सेर जलमें पकावें और ४ सेर रहने पर छान लें । एवं इसमें १ सेर घी तथा
१ जकारादि कषाय प्रकरणमें देखिये ।