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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ककारादि
द्रव पदार्थ-कटेली का स्वरस २ सेर (तथा । (९३२०) कपित्थायघृतम् पानी २ सेर)
(व. से. । अशो.) १ सेर धीमें यह कल्क और द्रव पदार्थ मिला स्वरसे तु कपित्थाम्लदाडिमामलकोद्भवे । कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब जलांश शुष्क हो | द्विपस्थे सर्पिषोः प्रस्थं पचेक्षारार्तिदाहनुत् ॥ जाय तो घी को छान लें।
___कैथका रस ४ सेर, खट्टे अनारका रस ४ सेर, इसके सेवनसे श्वास, अग्निमांद्य, स्वरभेद और | आमलेका रस ४ सेर और घी २ सेर लेकर सबको पांच प्रकारकी प्रबल कासका नाश होता है।
एकत्र मिलाकर पकावें और घृत मात्र शेष रहने एकत्र
पर छान लें। ( मात्रा-१ से २ तोले तक ।)
इसे ( लगाने और पीनेसे ) क्षार प्रयोगसे (९३१९) कण्टकार्यादिघृतम् उत्पन्न वेचैनी और दाहका नाश होता है । ( यो. र. । कासा.)
( ९३२१) करजायं धृतम् कण्टकार्यामलां क्षुण्णां कृत्वा द्रोणेऽम्भसः पचेत (च. द. । व्रणशोथा. ४३ ; वृ. मा. । व्रणा. ; व. देनाऽऽढकेन क्वाथस्य घतप्रस्थं पिचन्मितः॥7 से. । विद्रध्य. ; ग. नि. । व्रणा. ४ ; र. र. । रास्नादुःस्पर्शषड्ग्रन्थिपिप्पलीद्वयचित्रकैः।।
व्रणा. ; सु. सं * । चि. अ. १६ विध्य.) सौवर्चलयवक्षारकृष्णामूलैश्च तज्जयेत् ॥ नक्तमालस्य पत्राणि वरुणानि फलानि च । कासश्वासकफष्ठीवहिक्कारोचकपीनसान् ।। सुमनायाश्च पत्राणि पटोलारिष्टयोस्तथा ॥ ६। सेर कटेलीको कूट कर ३२ सेर पानी में |
द्वे हरिद्रे मधृच्छिष्टं मधुकं तिक्तरोहिणी। पकावें और ८ सेर रहने पर छान लें। तत्पश्चात् |
मनिष्ठा चन्दनोशीरमुत्पलं शारिखे त्रित् ।। उसमें २ सेर घी तथा निम्न लिखित कल्क मिला
एतेषां कार्षिकैर्भागघृतप्रस्थं विपाचयेत् ॥ कर पकावें और पानी जलने पर घी को छान लें ।
पाठ भेद कल्क-रास्ना, धमासा, पीपलामूल, पीपल, ४ सु. सं. में " प्रियंगुः कुशमूलं च निचुगजपीपल, चीतामूल, संचल ( काला नमक), | लस्य त्वगेव च " यह पाठ अधिक है। जवाखार और पीपलामूल १-१॥ तोला लेकर | १ तरुणानि फलानि च । पानीके साथ बारीक पीस लें।
२ व. से. में “ मंजिष्ठा....त्रिवृत्" के इसके सेवनसे कास, श्वास, रक्त थूकना, | स्थान पर प्रियङ्ग कुशमूलश्च निचुलस्य त्वगेव च " हिक्का, अरुचि और पीनसका नाश होता है। यह पाठ है (मात्रा-१-२ तोला ।)
३ स्नेहप्रस्थं।
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