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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवलेहमकरणम् परिशिष्ट ५५३ भूनें और फिर उसमें ४० सेर गोदुग्ध तथा २ सेर इसके सेवनसे अर्श जनित, कृमिरोग जनित. खांड मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । जब गाढ़ा हो और विरुद्ध अन्नपान जनित अतिसारका नाश होता है जाय तो अग्निसे नीचे उतार कर उसमें १।१। (पात्रा-६ माशे । ) तोला जायफल, जावत्री, कंकोल, नागकेसर, लौंग, अजवायन, अकरकरा, समन्दरशोषके बीज, सेठ, । ( ९३१२ ) कसेर्वाद्योऽवलेहः मिर्च, पीपल, हरे, बहेडा, आमला, दालचीनी, इला ( ग. नि. । लेहा. ४) यची, तेजपात, धतूरेके शुद्ध बोज, जीरा, फूलप्रियंगु और गजपीपल; इनका चूर्ण मिला दें। कसेरोस्तु तुलाधं हि द्वि द्रोणेऽपां त्रिपारयेत् ॥ मात्रा-५ तोले। द्रोणार्धशेषे पूते च दद्याद्गुडतुलां तथा। इसके सेवनसे प्रभेह, क्षीणता, मूत्रकृच्छ्, | सर्पिषः कुडवं दद्याल्लेहवत्साधु साधयेत् ।। अश्मरी, गुल्म, शूल, वातरोग और रक्त विकारोंका चतुष्पलं तु व्योषस्य त्रिजातं त्रिपल तथा । नाश होता है । इससे स्त्रियों में गर्भधारणकी शक्ति पलद्वयं केसरस्य चूर्ण कृत्वा विनिःक्षिपेत । आती और नपुंसक पुरुषो में शुक्रवृद्धि होती है। तद्यथाग्निबलं खादेकासकृमिज्वरापहः । यह पाक प्रसूताके लिये हितकारी, बाजीकरण, हृत्पाण्डुरोगवैवण्य दौर्बल्यनाहनाशनः ॥ बलकारक, नेत्रोंके लिये हितकारी, कामिनी मदभंजक | कसेरुकावलेहोऽयं स्वरपुष्टिविवर्धनः । तथा दीपन पाचन अद्वितीय योग है । ३ सेर १० तोले कसेरुको कूटकर ६४' सेर कपिकच्छुपाकः (२) | पानीमें पका और १६ सेर रहने पर छान लें । ( यो. त.) तदनन्तर उसमें ६। सेर गुड़ और आधासेर वी रस प्रकरणमें देखिये मिलाकर पुनः पकायें और गाढ़ा हो जानेपर अग्निसे (९३११ ) कल्याणावलेहः नीचे उतार कर उसमें २० तोले त्रिकुटा ( समान (व. से. । अतिसारा.) भाग मिलित सोंठ, मिर्च पीपल का चूर्ण ), १५ शर्कराधातुकिलोधैः पाठारलुकपिप्पली-। तोले त्रिजात ( दालचीनी, इलायची, तेजपात का समाभिर्मोचरसपद्मकेसरसंयुतैः ॥ | समान भाग मिलित चूर्ण) तथा १० तोले केसरका भमभवं कृमिजं विरुद्धपानान्नदोषसम्भूतम्। चूर्ण मिला दें। अतिसारामयं शमयति लेहः कल्याणको नाम्ना॥ ___इसके सेवनसे कास, कृमि, ज्वर, हृद्रोग, पाण्डु ____ खांड, धायके फूल, लोध, पाठा, अरल (सोना | रोग, विवर्णता, दुर्बलता और आनाह ( अफारे )का पाठा ) की छाल, पीपल, मजीठ, मोचरस और कमलकेसर; इनके समान भाग मिलित चूर्णको | नाश होता तथा स्वर और पुष्टि की वृद्धि होती है। ( शहदमें मिलाकर ) अवलेह बनावें । ( मात्रा-३-४ तोले ।) For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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