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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चूर्णप्रकरणम्] परिशिष्ट ५४१ ) समा मदनस्य फलक्वायं शुकाख्यास्वरसं तथा। (९२५८) काकोदुम्बरयोगः (२) एषः क्षारस्तु पानीयः श्लीपदं हन्ति सेवितः॥ (र. चि. म. । स्त. ३) अपची गलगण्डं च ग्रहणीदोषमेव च। काकोदुम्बरकचूर ब्रह्मदण्डी फलत्रिकम् । भक्तस्यानशनश्चैव हन्यात्सर्वविषाणि च ॥ .. प्रत्यहं मधुना लीढं रक्तकुष्ठापहं नृणाम् ॥ पष्वेव तैलं संसिद्धं नस्याभ्यङ्गेषु योजितम् । कठूमर, कचूर, ब्रह्मदण्डी, हर्र, बहेड़ा और एतान्येवामयान्हन्ति ये च दुष्त्रणा नृणाम् ॥ आमला समान भाग लेकर चर्ग बनावें । चौंटली, काकजंघा, बडी कटेली, छोटी कटेली, इसे शहदके साथ चाटनेसे रक्त कुष्ठका गोरखमुण्डी, लाल आक, कडवी तंबी और नाश होता है। ___ (१.२५९) काकोदुम्बरिकादियोगः कर हांडीमें बन्द करके भस्म करें और फिर उसे | (ग. नि. । कुष्टा. ३६) क्षार निर्माण विधिसे गोमूत्रमें घोलकर छान लें । | मथितेन पिबेच्चूर्ण काकोदुम्बर्यफल्गुजम् । तदनन्तर उसमें कठूमरका रस, मैनफलका क्वाथ तैलाक्तो धर्मसेवी स्यात्तकाशी श्वित्रमुद्धरेत् ।। और अरलुका स्वरस ( प्रत्येक उक्त क्षार-जल के कठूमरके चूर्णको मथित ( वस्त्रसे छनी निर्जल समान ) मिलाकर पकायें और क्षार बना लें। | दही ) के साथ सेवन करने, तक्राहार पर रहने और ____इसे पीनेसे इलोपद, अपची, गलगण्ड, ग्रहणी, रोज शरीरपर तेल मलकर धूपमें बैठनेसे श्वत्र (सफेद कुष्ठ )का नाश होता है। अरुचि और हर प्रकारके विषका नाश होता है। (९२६०) काकोदुम्बरिकामूलयोगः (मात्रा-१ माशा । ) (ग. नि. । मुखा. ५ ; रा. मा. । मुखरो. ५) इन्हीं द्रव्योंसे ( उक्त क्षार और कठूमर काकोदुम्बरिकामूलं पिष्टं तन्दुलवारिणा। आदिके रससे ) तेल सिद्ध करके उसकी नस्य लेने और मालिश करनेसे भी उक्त रोग एवं दुष्ट व्रणका | पानानिवारयत्याशु प्रवृत्तं वदनादमुक ॥ कठूमरकी जड़ को चावलोंके धोवनके साथ नाश होता है। पीसकर पीने से मुंहसे होने वाला रक्तस्राव शीघ्र (९२५७) काकोदुम्बरयोगः (१) बन्द हो जाता है। (व. से. । विषा. ; रा. मा. । विषा २८) (९२६१) काञ्चनारयोगः काकोदुम्बरमूलन्तु धत्तरफलकान्वितम् । (व. से. । गण्डमाला. ; ग. नि. | ग्रन्थ्य. १) पिवेत्तण्डुलतोयेन सारमेयविषापहम् ॥ पलमर्द्धपलं वापि पिष्ट्वा तण्डुलवारिणा। ____कठूमरकी जड़ और धतू रेका फल समान काञ्चनारत्वचः पीत्वा मुच्यते गण्डमालया ॥ भाग लेकर चूर्ण बनावें । २॥ से ५ तोले तक कंचनारको छालको इसे चावलों के धोवनके साथ पीनेसे कुत्तेका चावलोंके धोवनके साथ पीसकर पीनेसे गण्डमाला विष नष्ट होता है। का नाश होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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